नेताजी भगवन के रूप में ?
. नेताजी का संन्यास
. नेता जी भगवन् के रूप में
. भगवन् और उनके शिष्य
. भगवन् नैमिष में: गुमनामी बाबा के रूप में
. भगवन् और इटावा के संत चौधरी सुरेन्द्र सिंह
. मुखर्जी कमीशन और भगवन्
. हिटलर और द्वितीय विश्व युद्ध पर भगवन् के विचार
. भगवन् से संतो और भक्तों का वार्तालाप
. यूरोप, भारतीय पुनर्जागण, धर्म, दर्शन, राजनीति, 1857 की स्वतंत्रता-क्रांति, रानी झाँसी, महात्मा गाँधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल पर भगवन् के विचार।
. वृंदावन पर भगवन् के विचार
. भगवन् और फैजाबाद के भगवन जी
. भगवन् के अनन्य शिष्य स्वामी हरिओम जी
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस मुजेहना में भगवन् के रूप में ??
(1990 से वर्ष 2003 तक भगवन् के सन्निध्य में रहने के आधार पर)
- ब्रजेश
संत सम्राट भगवन् के ये चित्र समय-समय पर अनेक टी0वी0 चैनल पर इस मुद्दे के साथ प्रसारित किए गए कि क्या भगवन् सुभाष चन्द्र बोस हैं? भगवन् मुजेहना (थान गाँव थाना के निकट, जिला सीतापुर) में रह रहे थे यह मैदानी भाग में उनकी तपस्या का चालीसवाँ स्थान था। यह संयोग ही था कि किसी ने भगवन् के बारे में खोजपूर्ण रवैया नहीं रखा, जिससे कुछ महत्वपूर्ण तथ्य सामने आ सकते। आश्रम तपेश्वरी धाम, मुजेहना में 1990 में भगवन् ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया जिसमें अपने प्रिय शिष्य इटावा के बाबा सुरेन्द्र अवस्थी चौधरी को सम्मिलित होने के लिए सन्देश भेजा। बाबा सुरेन्द्र चौधरी हमारे घर अक्सर आया करते थे। हम इंदिरा नगर ए ब्लाक में रहा करते थे। हरीश श्रीवास्तव बाबा सुरेन्द्र चौधरी के बहुत प्रिय थे, फिर यह स्वाभाविक था कि जिस संदेश को पाकर बाबा सुरेन्द्र चौधरी अभिभूत थे, उसके बारे में हरीश श्रीवास्तव को विस्तार से बताते। बाबा ने बताया कि उनके पास भगवन का सदंेश आया है कि वह इस समय (1990) मुजेहना, तपोवन आश्रम में रह रहे हैं। दरअसल भगवन और कोई नहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही सन्यासी रूप में भगवन् हैं। बाबा सुरेन्द्र चौधरी भगवन् के साथ अनेक स्थलों पर रह चुके थे, इधर कुछ वर्षो से उन्हें भगवन् के बारे में पता नहीं था। हरीश श्रीवास्तव को कौतूहल होना स्वाभाविक था। हरीश श्रीवास्तव, अहमामऊ के राजकुमार मिश्रा, ऋषिराज चतुर्वेदी, इंजीनियर प्रेमनारायण कटियार, विश्व बंधु तिवारी बाबा सुरेन्द्र चौधरी के साथ भगवन् के दर्शन के लिए बड़े उत्साह के साथ वर्ष 1990 के उस यज्ञ में गए। कहा जाता है भगवन् रूस से भारत आए, वह कैलाश पर्वत पर तपस्या किए। बचपन में ही उन्हें अपने स्वरूप का ज्ञान हो गया था कि वह मनुष्य नहीं ईश्वर हैं। बाबा सुरेन्द्र अवस्थी चौधरी जब उक्त छह लोगों के साथ तपेश्वरी धाम पहुँचे तो भगवन् ने ऐसे स्वागत किया जैसे ये लोग कब के बिछुड़े हों। वे आनंद में भाव-विभोर थे कि वे न कि केवल बुद्धत्व प्राप्त संत सम्राट का दर्शन कर रहे हैं, बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अद्भुत सानिध्य उन्हें मिल रहा है, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया था और जो अब भी मित्र राष्ट्रों की नजर में है। भगवन् मौन रहते थे। उनकी संकेत लिपि थी जिसे उन्होंने कुछ लोगो और महंथ रामनरेश सिंह को सिखा रखा था। मंहथ जी भगवन् के संकेतों का अनुवाद करते। महंथ जी पढ़े लिखे नहीं थे, अक्षर-ज्ञान था। भगवन् जब मुजेहना आए तो पहले कापी पर लिखकर बालू में लिख-लिख कर अपनी संकेत लिपि का अनुवाद करना सिखाया। वह इस लिपि में बड़े विस्तार से किसी भी विषय पर बात करते थे। भगवन् लम्बाई, कद-काठी और चेहरे से नेताजी के चित्र से इतने मिलते जुलते थे कि भक्त लोग आसानी से जान जाते थे कि भगवन् नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं। यह दीगर बात है कि कोई प्रमाण नहीं है।
बाबा सुरेन्द्र चौधरी ने प्रार्थना की:भगवन् आश्चर्य होता है कि इतने वर्षो से आप से यह संसार कैसे अंजान है, जबकि आपका अतीत का व्यक्तित्व इतना तेजस्वी है कि हजारों काली रातों का अंधकार नहीं ढक सकता है।
भगवन् मुस्करा कर बोले - याद करो, कुरूक्षेत्र के युद्ध-मैदान में भगवान कृष्ण ने सूर्य को छिपा लिया था, जो परमात्मा लिए असम्भव कुछ भी नहीं रह जाता है।2
हरीश श्रीवास्तव ने भगवन् से प्रार्थना की: भगवन् यह देशवासियो का दुर्भाग्य है कि वे हमेशा से कष्ट में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, क्योंकि राजनेता और अधिकारी इनकी जड़ खोदते रहे, ये देश की समृद्ध विरासत को हजम करते जा रहे हैं।
जब बाबा सुरेन्द्र चौधरी और हरीश श्रीवास्तव आदि अपने इस दृढ़ विश्वास के साथ लौटे कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस अब भगवन हैं और वह मुजेहना आश्रम में रह रहे हैं तब हरीश श्रीवास्तव के छोटे भाई डा0 बृजेश कुमार श्रीवास्तव भगवन् के दर्शन के लिए मुजेहना गए। प्रोफेसर भगवन् का दर्शन करके और उनसे बातचीत करके इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इसमें दो राय नहीं कि भगवन् ही सुभाष चन्द्र बोस हैं, लेकिन भक्तों के पास इसका कोई प्रमाण नहीं है। भगवन् अपनी फूस की कुटिया में वट वृक्ष के नीचे रहते थे, वह अन्न नहीं ग्रहण करते थे, थोड़ा दूध या कुट्टु की चपाती, लौकी आदि ग्रहण करते थे। उनकी तपस्या बड़ी कठिन थी।
भगवन् के दर्शन के लिए नित्य बहुत से दर्शनार्थी आते। उनमें अधिकांश लाइलाज कष्ट के मारे होते। भगवन् ऐसे दुखी भक्तों से कहते: यहाँ आ गए हो, अब हँसते हुए जाओ। कष्ट तुम्हें छू नहीं सकता और वे चंगे हो जाते। इस तरह जन सामान्य के बीच भगवन् अवढरदानी शिव की तरह प्रसिद्ध थे जो अपने भक्तों के दुर्भाग्य का जहर लगातार पीते जा रहे थे। तपेश्वरी धाम आश्रम में बहुत से सिद्ध महात्मा आते जो भगवन् का दर्शन करते। उन संतों की दृढ़ आस्था होती कि भगवन् ईश्वर के अवतार हैं, उनका पूर्व रूप नेताजी का है। चूँकि अब नेताजी ईश्वर स्वरूप संत थे और अंहिसा व्रत में थे, यदि वह अपने नेता जी रूप का खुलासा करते तो देश के भीतर और बाहर दुनिया में बवाल होता इसलिए यह समय की मांग थी कि इतिहास का गौरवपूर्ण अध्याय पर्दे के पीछे समाधि में स्थित रहे। ,
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एक बार एक संत ने भगवन् से पूछा: हे संतो के संत! आपने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिला दी। आप ने भारतीय आदर्शो, वेदांतिक परम्पराओं के चरम स्वरूप को जिया। आप स्वयं सूर्यों के सूर्य हैं, फिर भला आप को क्या चीजें छिपा पाएँगी?
भगवन् बोले: भगवान् कृष्ण ने कुरूक्षेत्र में जब इच्छा की तो सूर्य जैसे आकाशगंगा के पीछे चला गया हो, भगवान् की माया ने सूर्य को छिपा लिया और जब फिर इच्छा की तो सूर्य अपनी महिमा के साथ प्रकट हो गया।
( भगवन् का व्यक्तित्व इतना महान् है कि उनका दर्शन करने वाला उनकी दैवीय आभा में अपना व्यक्तित्व ही भूल जाता है। दर्शनार्थी के हृदय में उठने वाले सारे प्रश्न भगवन् की अलौकिक महिमा में घुल जाते हैं। प्रोफेसर भगवन के दर्शन के लिए गए। भगवन् यज्ञ-स्थल के पास संयोग से अकेले टहल रहे थे। भक्तगण उनके दर्शन के लिए जगदम्बा तपेश्वरी के सामने बैठे थे। प्रोफेसर महंथ जी को लेकर भगवन् के पास पहुँचे। )
उन्होनें पूछा: भगवन् आप नेताजी रूप में फिर प्रकट होंगे या नहीं।
भगवन् बोले: जब एलॉय सोना बन गया तो सोना फिर एलॉय क्यों बनेगा? मनुष्य की कार्य भूमिका सदा एक सी नहीं रहती है। यदि मेरी इच्छा हुई तो लोग सब कुछ जानेंगे। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा - ’’मेरा एक अवतार काल भगवान का भी है।’’ लोग नेताजी की प्रतीक्षा क्यों कर रहे हैं। वे स्वयं सुभाष चंद्र बोस क्यों नहीं बनते। प्रत्येक व्यक्ति समय की मांग के अनुकूल अपनी क्षमता भर अपने तरीके से देश की सेवा कर सकता है।
एक भक्त जो कोलकाता से आया हुआ था, भगवन् से पूछा: भगवन् बहुत से लोग कहते हैं कि नेताजी ने नाजी हिटलर का पक्ष लिया, क्या यह सच है?
भगवन् हँसे और बोले: यह बचकाना है। 1936 में म्यूनिख में जब हिटलर ने अपने वीरतापूर्ण उच्च सिद्धांतो के बारे में भाषण दिया, उस समय नेता जी को यूरोप से अपने देश लौटना था, उस समय नेता जी ने अपनी गम्भीर प्रतिक्रिया देते हुए कहा: हिटलर के सिद्धांत निश्चित ही कायरतापूर्ण हैं। अब यह संसार नस्लवाद के अत्याचार को सहने वाला नहीं है। वह स्वयं उपनिवेशवाद के साथ-साथ दिखावटी और मानव-मूल्यों को क्षति पहुँचाने वाली शैतानी कार्य विधियों के खिलाफ लड़ते रहेंगे। नेताजी हिटलर से ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सहयोग माँगने जरूर गए थे लेकिन अपनी शर्तो पर।
दिल्ली से आए हुए एक भक्त ने जब यह देखा कि भगवन् का स्वरूप और व्यक्तित्व नेता जी से इतना अधिक मिलता है तो वह श्रद्धावनत होकर पूछा: भगवन् आप का जन्म कब हुआ?
भगवन् बोले: 23 जनवरी 1897। लेकिन मैं एक सन्यासी हूँ और सन्यासी का दूसरा जन्म भी होता है। एक बार मैं हावड़ा ब्रिज से हुगली में गिर गया था। तब भगवती तपेश्वरी (पार्वती) प्रकट होकर मुझे कैलाश ले गयीं, वहाँ मै अपने विष्णु तपोरूप में स्थित हो गया।
काशी से आए हुए एक भक्त बोले: भगवन् बहुत से संत अपने को नेताजी सुभाष चंद्र बोस बताते हैं।
भगवन् बोले: यदि कोई भी देशवासियों को धोखा देने की कोशिश करेगा कि वह नेता जी है तो मैं राजघाट चलकर, ब्रम्हाग्नि प्रकट करके आदिशक्ति माँ सती की तरह अपने को भस्म कर लूँगा।
विसवां का एक भक्त:भगवन् कुछ लोग भारतीय सुभाष सेना गठित किये हैं और इसका संस्थापक आपको बताते हैं।
भगवन्:जो मुझे संस्थापक बताते हैं वे ठग हैं। पुलिस को चाहिए कि ऐसे ठगो को जेल में डाल दे। तप ही मेरा धर्म है तप ही मेरा कर्म है। सुभाष भगवान कल्कि के अवतार हैं उनका नाम कलंकित करने वाले सूर्य जैसे सत्य को हानि पहुँचाने का अधर्म करेंगे।
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उसने पुनः पूछा: भगवन् क्या नेता जी भारत में डिक्टेटरशिप चाहते थे, जैसाकि वह साम्यवादी थे।
भगवन् बोले: यद्यपि उन्होंने अपने को साम्यवादी बताया था, और वह काँग्रेस मे वाम पक्ष की राजनीति करते थे लेकिन उनका आशय देश को शक्तिशाली बनाने के लिए अनुशासन से था। वह साम्यवादी माॅडल से नहीं सहमत थे। वह राष्ट्रवादी समाजवादी थे। वह माँ जगदम्बा के पुजारी थे। वह स्वामी विवेकानंद की पुस्तकें पढ़ चुके थे और उनसे बहुत प्रभावित थे। स्वामी विवेकानंद आध्यात्मिक लोकतंत्र के पक्षधर थे, जो पश्चिमी देशों की भी अज्ञात था। आध्यात्मिक लोकतंत्र में जाति-पाँति न होता, चुनावों में भ्रष्टाचार से अर्जित अकूत धन की बाढ़ न दिखाई पड़ता, उसमें जातियों, धर्मो के वोट बैंक में तब्दील होने की कोई गुंजाइश नहीं होती। तुष्टीकरण की गुंजाइश न होती। धर्म का कपटपूर्ण नारा देकर जनता को ठगने और परस्पर लड़ाने की बात न होती । धर्म भेदभाव नहीं सिखाता है । हिन्दू, यहूदी , ईसाई , मुसलमान आदि सभी एक ही परमात्मा की संतानें हैं । कुशासन, झूठ , कपट , दुराचार हर युग में रहा है लेकिन इस युग में ये बातें चरम पर पहुंच चुकी हैं । राम चरित मानस की यह बात निर्मल मन जन सो मोंही पावा। मोंहि कपट छल छिद्र न भावा ।। , कितने लोग अपने आचरण में उतारते हैं ।सदाचरण ही धर्म की कसौटी है । धर्म दुखी , पीड़ित , अत्याचार से ग्रस्त लोगों को उबारना सिखाता है । सत्ता मद और अहंकार के विष से कुछ लोगों ने मानव जाति को बार बार डंसकर पीड़ा और अंधकार के हवाले कर दिया , लोगो की स्वतंत्रता , सुख , शांति हर लिया । वैदिक सभ्यता में असुर ऐसे ही थे जिनसे भगवान इंद्र ने मुक्ति दिलाई , रावण और उसके निशाचर ऐसे ही थे , भगवान राम ने इनसे मुक्ति दिलाई , कंस, जरासंध , धृतराष्ट्र, दुर्योधन आदि ऐसे ही थे भगवान कृष्ण ने इनसे मुक्ति दिलाई , फिर मानव सभ्यता हजारों ऐसे उदाहरण से भरी पड़ी है । रानी दुर्गावती , शिवा जी, गुरु गोविंद सिंह , शिवा जी , महारानी लक्ष्मी बाई , महात्मा गांधी , नेता जी जैसे कितने ही लोग मानव जाति का नर्क से उद्धार करके उसे स्वतंत्रता , सुख , समृद्धि और परमात्मा की ओर ले जाते हैं । हर महाद्वीप में ऐसा हुआ । सुभाष चंद्र बोस इसी लोकतंत्र के पक्षधर थे। बिना अनुशासन के तीव्र विकास सम्भव नहीं था। नेता जी तेजी से औद्योगीकरण चाहते थे, लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से। पर इस प्रकार का लोकतंत्र बिना लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को हानि पहुचाये कड़े अनुशासन के ना आ पाती।
विश्वबंधु तिवारी भगवन् के बहुत स्नेहिल शिष्यों में थे। उन्होंने भगवन् से कहा: भगवन् इस देश के लोग नेता जी को बहुत पसंद करते हैं। उनका व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद की भाँति महान् तेजस्वी व्यक्तित्व है। देश के लोगों का विश्वास है कि नेता जी जीवित हैं और मित्र राष्ट्रों की सरकारें नेता जी की जासूसी कर रहे हैं।
भगवन् मुस्कराए और बोले: वे नेता जी किसी से छिपकर नहीं रहते हैं। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा: वे जो मुझे इस रूप में जानते हैं कि मैं किसी भी चीज की इच्छा करता हूँ, वे मुझे नहीं जानते और वे जो समझते हैं कि वे मुझे पहचान गए हैं, वे नासमझ हैं। मेरी ही महिमा से सूर्य निकलता है और अस्त होता है।
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नेहरू में बहुत अच्छे गुण भी थे। बुराइयों की चर्चा नही करनी चाहिए।
इटावा के बाबा सुरेन्द्र चौधरी भगवन् के साथ घने जंगलों-पर्वतों में, निर्जन प्रदेशों में भगवन् की कुटिया में काफी समय उनके साथ गुजार चुके हैं। वे भक्तों से कहते हैं: ’’यह स्वर्णिम अवसर है। भगवन् जब तक मुजेहना में रह रहे हैं, लोग अपना भाग्य सँवार सकते हैं। यहाँ तो भगवन् दर्शनार्थियों से बात-चीत दुभाषिया के माध्यम से भी करते हैं। जब वह नैमिष में रहते थे पर्दे के पीछे रहते थे। गुमनामी बाबा या परदे वाले बाबा के रूप में जाने जाते थे। वहाँ हरिद्वार से माँ आनंदमयी भगवन् के दर्शन के लिए अक्सर आतीं, वह जानती थीं कि भगवन् नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं। वह भगवान कल्कि के अवतार हैं। उनकी भूमिका का पहला हिस्सा तो हो चुका है, दूसरा हिस्सा संत रूप में चल रहा है, तीसरा हिस्सा निर्गुण निराकार भगवान के रूप का होगा, जब वह विश्व-मानवता की रक्षा करेंगे। यहाँ तक कि संत भी अपने दिव्य ज्ञान से यह नहीं जान सकेंगे कि वह भविष्य में क्या करने वाले हैं। ऐसा भगवन् ने मुझे बताया।’’
बाबा सुरेन्द्र चौधरी भगवन् के सामने अक्सर भावुक हो उठते हैं। वह भगवन् के सामने बैठे हैं। जब वह अपने भाव-ज्वार को नहीं रोक सके, भगवन् से बोले: ’’भगवन् इस देश ने एक ऐसा कलंक पाया है, जिसे धुला नहीं जा सकता। वह यह कि मित्र राष्ट्रों ने यह कहा है कि नेता जी युद्ध अपराधी हैं। वह यदि कहीं भी पाए जाते हैं तो उनके ऊपर युद्ध-अपराधी होने का मुकदमा चलाया जाएगा। मित्र देश अपने विचारों को राजनीतिक महिमा देने में बहुत चतुर हैं। इस देश ने यदि मित्र राष्ट्रों से इस बात पर सहमति न व्यक्त की होती तो नेता जी को निर्वासन में न रहना पड़ता।’’
भगवन् मुस्कुराए और आशीर्वाद में अपना हाथ उठाते हुए बोले: ’’सुभाष चंद्र बोस ने बर्लिन में फ्री इंडिया सेन्टर की स्थापना की, उस समय उसे फॅारेन एम्बेसी के रूप में कई देशों ने मान्यता प्रदान की। वहाँ नेता जी ने जय हिंद को अभिवादन बोधक घोषित किया था। स्वतंत्र भारत ने नेताजी द्वारा घोषित इस बात को स्वीकृति दी और जारी रखा। यह इस देश द्वारा नेता जी को दिया गया अनमोल सम्मान है। नेता जी इस मातृभूमि से हैं न कि मातृ भूमि नेता जी से है। देश आदिशक्ति, जगदम्बा की तरह है, जिसे धरती भगवान बना देती है, उसे भला दूसरी अपेक्षा क्या हो सकती है। भगवान को न कोई चाहत होती है न उन्हें कोई कलंक छू सकता है।
जब भगवान कृष्ण कौरव सभा में शांति प्रस्ताव लेकर गए तो दुर्योधन ने अपने साथियों को भगवान कृष्ण को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। भगवान कृष्ण ने कहा-यदि तुम कर सकते हो तो गिरफ्तार कर लो। सूर्य के भरपूर प्रकाश में भी तुम मुझे नहीं देख सकते हो क्योंकि यह ब्रम्हांड मुझसे ही पैदा हुआ है। दुर्योधन की सेना के लोग ठगे खड़े रहे, भगवान के तेज से ही चकाचौध हो गए।’’
दिल्ली से आए हुए एक भक्त ने पूछा: भगवन् यूरोप अपने ज्ञान का बड़प्पन दूसरे देशों पर थोपता है। भारत कैसे सुपर पावर बन सकता है?
भगवन् बोले - उन्नीसवीं सदी से यह संसार यूरोप केन्द्रित हो गया है। ज्ञान और आविष्कार के विभिन्न क्षेत्रों में भारत अपने को क्यों नहीं श्रेष्ठ बनाता है, उसे कौन रोके हुए है। यहाँ आलसी लोग संस्कृति को लोभी और छलपूर्ण बना रहे हैं। फिर किसी को महाशक्ति बनने की जरूरत क्या है? क्या हम समानता, बंधुत्व और सम्प्रभुता का संकल्प केवल संविधान तक ही सीमित रखते हैं, लोगों को उस सरकार को सत्ता से वंचित कर देना चाहिए जो जाति, सम्प्रदाय, लिंग और धर्म के आधार पर जनता को बरगलाती यदि नहीं, तो विकास और आविष्कार के विषय में कौन सोचेगा।
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स्वामी विवेकानंद ने यूरोप के अहंकारी ज्ञान और पूर्वी देशों के बारे में नीची सोच को बहुत पहले आइना दिखा दिया था।
ईसा मसीह भगवान के प्रिय पुत्र थे, ईसदूत थे। पश्चिमी देश उनकी शिक्षाओं की कद्र नहीं करते हैं। वे सभी भौतिकवादी हो गए हैं।
भगवन् के दर्शन के लिए सुदूर शहरों और गाँवों से लोग आए हुए हैं। आजकल वह दर्शन देने के लिए तीन बजे दोपहर में निकलते हैं। पहले वह लाइलाज बीमारियों और आपदाओं से सताए गए दुखी भक्तों की फरियाद सुनते हैं। महंथ राम नरेश सिंह भगवन् की बातों का अनुवाद करते हैं - ’’तुम यहाँ आ गए हो, अब प्रसन्न होकर जाओ, मैं अपने भक्तों का सारा दुःख ले ले रहा हूँ। भक्तों का दुःख ही मेरा आहार है। उन्हें कष्टों से मुक्त, स्वस्थ और प्रसन्न करना ही मेरी तपस्या है।’’
और भगवन् के ऐसा कहते ही फरियादी भले चंगे हो जाते । ये दृश्य जो देखते वे अभिभूत हो जाते । जब कभी सिद्ध संत , योगी भगवन के दर्शन के लिए आए हुए होते उनके भी सामने ऐसा घटित होता । नित्य भगवन के दर्शन के लिए दुखी , आपदा के मारे अत्याचार से त्रस्त लोग आते । संत गण प्रभु की इस लीला पर अपनी भावुकता नहीं रोक पाते , कहते - धन्य हो , धन्य हो विश्वंभर , भगवान विष्णु अवढर दानी शिव के रूप में भक्तों के दुर्भाग्य का जहर पी रहे हैं । जो बहुत सौभाग्यशाली हैं वे ही इस लीला को साक्षात देख रहे हैं । सामान्य स्थितियों में तो सारे देश की भीड़ उमड़ पड़ती लेकिन भगवन् कहते मेरी इच्छा अमोघ है , यहां वही आ पाता है जिसे आदिशक्ति पार्वती भेजती हैं ।
भगवन् ने प्रोफेसर को बुलाया और कहा: किसी पेंटर से एक अच्छी पेटिंग बनाने को कहो, जो मेरी और स्वामी विवेकानंद जी का चित्र हू-ब-हू बना सकता है। उससे कहो ऐसी पेटिंग बनाए जिसमें हिमालय की चोटी पर स्वामी विवेकानंद बैठे हों, उनका आशीर्वाद में उठा हाथ मेरी तरफ हो और मैं हिमालय की तलहटी में एक शिलाखंड पर बैठा होऊँ। मेरे ठीक पीछे सुभाष चंद्र बोस आई.एन.ए. ड्रेस में खड़े हों।
अगली बार जब प्रोफेसर भगवन् के पास आए तो भगवन् ने जैसा कहा था वैसी ही पेंटिंग बनवाकर ले आए। भगवन् पेंटिंग देखकर बहुत प्रसन्न हुए और अपनी कुर्सी के बगल में रख लिए, उनकी कुर्सी के हत्थे पर लिखा था-गाँधी-सुभाष चंद्र बोस पंथी संत। कुछ वर्षो के बाद भगवन् ने वह पेटिंग अपने किसी भक्त को आशीर्वाद के रूप में दे दिया।
इस पेंटिंग के माध्यम से भगवन् जो सन्देश देना चाहते थे वह साफ़ है, प्रश्न उठता है कि वह क्यों नहीं प्रकट हुए? भगवन् कहते थे वह अखंड अहिंसा व्रत में हैं। आने वाले नए युग के लिए तपस्या कर रहे हैं।
डा0 अलोकेश बागची का गोरखपुर में नर्सिंग होम था। वह भगवन् के स्नेहिल शिष्य थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि भगवन् नेता जी सुभाष चंद्र बोस हैं। भगवन् ने कह रखा था कि जब तक वह शरीर में हैं, कोई उन्हें नेता जी के रूप में प्रचारित न करे, इसलिए भगवन् के अधिकांश भक्त इस मुद्दे पर मौन ही रहते, लेकिन डाॅ0 वागची कुछ ज्यादा मुखर थे। जब केन्द्र सरकार द्वारा मुखर्जी कमीशन बनाया गया तो डाॅ0 बागची जस्टिस मुखर्जी से मिले और वह भगवन् से जिद करने लगे कि वह एक बार जस्टिस मुखर्जी को आश्रम पर लाना चाहते हैं। वह भी आपके दर्शन कर लें।
भगवन् ने डाॅ0 बागची से कहा: जस्टिस मुखर्जी एक भले इंसान हैं, उन्हें अपना काम करने दो। पिछले दो आयोगों की रिपोर्ट ने नेताजी के बारे में भ्रमपूर्ण, गलत विचारों का अम्बार लगा रखा है। सत्ता हस्तांतरण और नेताजी के सम्बन्ध में बहुत सी फाइलें में पहले ही खो चुकी हैं। एक बार द्रौपदी ने भगवान कृष्ण से पूछा: वह सोलह कलाओं से सम्पन्न सर्वशक्तिमान भगवान हैं फिर वह हस्तिनापुर की सारी समस्यायें क्यों नहीं हल कर देते, भगवान कृष्ण ने कहा: निश्चित ही मैं सब कुछ करने में सक्षम हूँ, लेकिन यदि मैं ही सब कुछ कर दूँ तो संसार क्या करेगा, प्रत्येक व्यक्ति को अपना कर्तव्य करना चाहिए और संसार को उच्च आदर्शो तथा आनंद से परिपूर्ण कर देना चाहिए।
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राजवीर, क्रांतिकारी जो अमरोहा में प्रोफेसर हैं, कवि हैं, वह भी दृढ़ विश्वास रखते थे कि भगवन् ही नेता जी हैं, लेकिन जो लोग यह जानते थे वे सार्वजनिक रूप से इस बात का प्रचार प्रसार इसलिए नहीं करते थे क्योंकि भगवन् ने यह कह रखा था कि जब तक वह शरीर में हैं, कोई उन्हें नेताजी के रूप में प्रचारित न करें, क्योंकि वह स्वयं इस बात का दावा नहीं करेंगे। वह पूर्ण अहिंसा के व्रत में हैं और उनके दावा करने से देश के भीतर शेष दुनिया और में बवाल हो सकता है।
इंदिरा नगर में एक अच्छे गृहस्थ संत ओम प्रकाश जी रहते हैं। वह इंदिरा नगर ए ब्लाक के राजेश कनौजिया के साथ भगवन् के दर्शन के लिए गए, भगवन् ने आत्यंतिक स्नेह के साथ श्री ओम प्रकाशजी का स्वागत किया। राजेश ने भगवन् से अनुरोध किया कि वह ओम प्रकाश जी की आध्यात्मिक साधना को अपनी कृपा दें।
भगवन् बोले: इन्हें पहले से ही आदिशक्ति की कृपा मिल चुकी है, मेरा आशीर्वाद है। यह गृहस्थ संत हैं। इनकी आध्यात्मिक साधना काफी ऊँची है।
ओम प्रकाश जी ने भगवन् से प्रार्थना की: भगवन् इस देश ने कभी अपने क्रांतिकारी सपूतों, भगत सिंह, आजाद आदि की चिंता नहीं की उन्हीं के बलिदानों से देश को आजादी मिली, लेकिन देश उनके आदर्शो को घूरे में डाल चुका है। लेकिन आप की महिमा और अनुग्रह से सब कुछ सम्भव है। यदि आप चाह लेंगे तो यह देश अपनी खोई हुई गरिमा पुनः प्राप्त कर सकता है।
भगवन् ने संत ओम प्रकाशजी को सांत्वना दी। भगवन् बोले: कुछ भी बेकार नहीं गया है। इस देश की जनता बहुत से भ्रष्टाचारी राजनेताओं और अधिकारियों के लिए हरा चारा है। महारानी लक्ष्मीबाई 1857 की क्रांति की महानायिका थीं, उन्होंने राजकुमारों और राजाओं को ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की प्रेरणा दी। लेकिन इतिहास ऐसे क्रांतिकारी का उल्लेख एक-दो पैराग्राफ में कर देता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। भगवान राम, जिनका नाम ऋषियो-मुनियों को मोक्ष प्रदान करता है, उन्हें भी वर्षा ऋतु में अपनी यात्रा बंद कर देनी होती थी। जो छिपा सकता है, वह उजागर भी कर सकता है। कुरूक्षेत्र में जयद्रथ जब निश्चिंत हो गया कि अब तो सूर्यास्त हो गया, तब भगवान कृष्ण ने कहा-देख जयद्रथ, सूर्य अपने पूरे ऐष्वर्य के साथ चमक रहा है।
स्वामी भगवान दास, विद्यार्थी बाबा और स्वामी विरक्तानंद, त्यागी बाबा भगवन् के स्नेहिल शिष्यों में थे। इन लोगों ने भगवन् से पूछा: भगवन् कृपा करके बताएँ कि हमारा क्या कर्तव्य है।
भगवन् ने कहा - आदिशक्ति जगदम्बा की भक्ति में रहो और मानवता की सेवा करो। स्त्रियाँ सन्यासियों के लिए माँ होती हैं। यह संसार जितना सत्य है, उतना ही नश्वर भी है। इसके प्रत्येक कण में भगवती सीता और भगवान राम विराजते हैं।
संतों की तपस्या भक्तों के दुर्भाग्य का जहर पीने के लिए और संसार में लोगों को सत्कर्म तथा भक्ति की तरफ प्रेरित करने के लिए होती है । जैसे सूर्य सभी को रोशनी देता है चाहे कोई उसे गैसों का जलता हुआ भंडार के रूप में देखे या सूर्य नारायण के रूप में स्तुति करे , कोई फर्क नहीं पड़ता । एक की दृष्टि केवल उसके बाह्य रूप तक है दूसरा उसे दैवीय रूप दे देता है , भिन्न विचारों के कारण एक दूसरे से द्वेष करने वाले , आपस में लड़ने वाले अज्ञानी हैं । गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं धार्मिक व्यक्ति किसी से द्वेष नहीं करता , घृणा नहीं करता , दंगा फसाद और छल , षड्यंत्र नहीं करता । केवल पूजा करने से या धर्म धर्म का नारा देने से कोई धार्मिक नहीं हो जाता है । रावण , कंस , जरासंध , दुर्योधन सभी अपने को धार्मिक समझते थे लेकिन उनके कर्म राक्षसों की तरह थे , भगवान उनका नाश करते हैं । उसके बाद भी मानव सभ्यता का इतिहास देखिए अत्याचार करने वालों को प्रकृति , जनता, ईश्वर सभी दंडित करते हैं । संत का कर्तव्य है मानव जाति में स्वतंत्रता , सत्य , प्रेम , करुणा , उद्यमिता, वीरता , अहिंसा , प्रकृति से अंतरंगता , प्राणि मात्र को पीड़ा से मुक्ति दिलाना , चर अचर का पालन , रक्षण और उत्थान करना । सन्यासी ही संत नहीं होते हैं , गृहस्थ में भी संत होते हैं । संत सदा भगवान में स्थित रहे , इससे वह अभय रहेगा , दुराचारी और क्रूर शासक से नहीं डरेगा । उसके लिए यदि संभव हो तो वह महात्मा गांधी की तरह अन्याय - अत्याचार से मानव जाति को मुक्ति दिलाने का उद्यम करे । संत सन्यासी चोले का नाम नहीं है , सद्कर्म , भक्ति , ईश्वरीय ज्ञान सिद्ध होने पर स्त्री या पुरुष संत कहलाते हैं । संत केवल भगवान की स्तुति करता है शेष संसार का उपकार , वह किसी अधिकारी या राजनेता की चाटुकारिता नहीं करता है, किसी राजनीतिक पार्टी का प्रचार नहीं करता है ।
नैमिष के सिद्ध संत सुधर्मानंद सरस्वती हरिशचंद्र के साथ भगवन् के दर्शन के लिए मुजेहना गए, स्वामी सुधर्मानंद प्रायः तप और समाधि में स्थित रहते हैं। भगवन् को देखते ही स्वामी जी भाव-विह्वल हो गए, उन्होंने भगवन् को बंदगी लगाई और भगवन् से प्रार्थना की: हे ब्रम्हांड के रचयिता, चर-अचर के स्वामी! आपकी कृपा के बिना आप को कोई पहचान नहीं सकता है। आप यहाँ संसार को दर्शन देते हुए, तपस्या कर रहे हैं फिर भी संसार की सरकारें आपको ढूँढ़ रही हैं-सबहिं नचावत राम गोसाई। सांसारिक बुद्धि से भला वे आपको कैसे पहचान सकते हैं।
भगवन् बोले: भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा: इस पृथ्वी पर सभी अपने भाग्य के साथ खुश हैं। यद्यपि मैंने इस संसार को पर्याप्त आजादी, शक्ति और बुद्धि दी है कि वह अच्छा या खराब के बीच चुनाव कर सके।
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भगवन् ने महंथ से कहा - अच्छे महात्मा आए हुए हैं। इन्हें प्रसाद लाकर दो। मंहथ ने वैसा ही किया।
सीतापुर की सुधा पांडे, लखनऊ की सविता शुक्ला, मंजू मिश्रा, मुन्ना सिंह, रवीन्द्र तिवारी, आर0पी0 मिश्र, विसवाँ के बलबीर, सीतापुर के रंजय शुक्ला की सासू माँ तपेश्वरी धाम, भगवन् के दर्शन के लिए और भगवती दुर्गा की आराधना के लिए अक्सर जाते रहते।
इलाहाबाद से आए एक भक्त बोले: भगवन् हिटलर जब डे्रकुला बन गया था तो जर्मनी भला उसे कैसे सह रही थी।
भगवन् बोले: बीसवीं सदी बहुत अधिक दुर्भाग्यशाली रही, वर्साय संधि ने जर्मनों के बीच घृणा भर दी, जिससे हिटलर का अभ्युदय हुआ। मित्र राष्ट्र भी साम्राज्यवादी और अनैतिक थे। लेकिन हिटलर के पाप भयानक थे , जातीय घृणा से पीड़ित वह मनोरोगी तानाशाह था । हर तानाशाह अधर्मी होता है क्योंकि वह जनता के अंदर भय पैदा करके मनमाने गलत काम करता है । यदि जनता शक्तिहीन और लाचार न हो तो अत्याचार क्यों सहे।
मसलमानो और अंग्रेजो का राज्य हिंदुस्तान के लिए अभिशाप था। लेकिन इतिहास बदले के लिए नहीं होता है। यहाँ जितनी क़ौमें रहती हैं उन्हें शांति से रहते हुए इस आर्य भूमि का उत्थान करना चाहिए। यह मुगल साम्राज्य के पाप में निश्चित ही हिन्दुओं की भी भागीदारी थी। इस्लामिक साम्राज्य में अनाचारों और युद्धों की श्रृंखला ने यहाँ की धरती को लूट कर श्री विहीन कर दिया था। इस लूट में हिन्दू सामन्त भी शामिल थे। राजा और बड़े ओहदे के मंत्री जैसा करते हैं छोटे ओहदे वाले राजपुरूष भी वैसा ही करने लगते हैं। मध्यकाल में ही यह देश अपनी सांस्कृतिक चमक खोता गया। जब अंग्रेजी हुकूमत यहाँ कायम हो गई तो अंग्रजों ने रही-सही कसर पूरी कर दी, उनका साम्राज्य मुस्लिम साम्राज्य से कहीं ज्यादा क्रूर ठहरा। अंग्रजों ने इस देश के लोगों की जिन्दगी नरक बना दी। इन सदियों में हिन्दुस्तान अनेक हिटलरों द्वारा रौंदा गया। युद्ध पर युद्ध होते रहे। मुस्लिम साम्राज्य में केवल मुस्लिम ही शासक नहीं थे, वे अपना शासन हिंदुओं के सहयोग से चलाते थे, इसलिए इस देश के पतन के लिए मुसलमान ही जिम्मेदार नहीं हैं। अंग्रेजों ने भी ठीक वही काम किया, अपनी हुकूमत हिन्दुओं के सहयोग से चलाया। मुस्लिमों ने तो इस देश की तरक्की के कई अध्याय रचे पर अंग्रेजों ने इस देश को केवल दिवालिया बनाया। अंग्रेज इस देश के खून की अंतिम बूंद तक चूस लिए।
दिल्ली से आए हुए एक भक्त ने पूछा: भगवन् बहुत से स्रोतों से यह पता चलता है कि नेता जी को सोवियत रूस में वर्ष 1950 में देखा गया। 1964 तक अमेरिका और ब्रिटेन नेताजी पर जासूसी नजर रखते रहे। यह मानकर कि योगी या संत बहुत अधिक वर्षो तक जीवित रहते हैं, ब्रिटेन और अमेरिका वर्ष 2000 तक नेताजी पर जासूसी नजर रखते रहे। नेताजी ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ तलवार उठाकर एक स्वाभाविक कार्य ही तो किए थे, फिर इतने बड़े वीर सपूत के पीछे इतने देशों के जासूस क्यों रहे?
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भगवन् बोले: नेता जी ब्रिटेन के खिलाफ लगातार आग उगलते रहे और अपने बहुत से भाषणाे में मित्र राष्ट्रों के पराजय की भविष्यवाणी करते रहे, यह जानते हुए भी कि धुरी राष्ट्रों का पाप कम नहीं है। इसलिए ब्रिटेन-अमेरिका का नेता जी से चिढ़ना स्वाभाविक था। ये देश यह नहीं सोचते थे कि नेताजी ने अपने कर्त्तव्य के अलावा कुछ नहीं किया। यदि गलत इरादा अपना विस्तार लगातार कर सकती है तो अच्छा इरादा अनंत हो सकता है। सच्चे संत का तपोबल अनंत होता है।
भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा:
सृष्टि के कल्याण के लिए मैं बिना रूके अनवरत कार्य करता रहता हूँ। भरपूर प्रकाश में भी कोई मुझे नहीं देख सकता है |पवित्र तीर्थ नैमिष के महान् संत स्वामी नारदानंद सरस्वती के प्रिय शिष्य स्वामी सुधर्मानंद सरस्वती हरिशचंद्र के साथ मुजेहना भगवन् के दर्शन के लिए गए। भगवन् ने बड़े वात्सल्य के साथ स्वामी जी और हरिशचंद्र का स्वागत किया। स्वामी सुधर्मानंद हाथ जोड़कर भाव विभोर होकर भगवन् से प्रार्थना करने लगे: भगवन् मेरी आँखों के लिए अविश्वसनीय है कि जिनके चरणों में मोक्ष विद्यमान है, उसी विराट पुरूष के समक्ष मैं बैठा हुआ हूँ।
भगवन् ने आशीर्वाद में हाथ उठाया और महंथ से बोले: इनका स्वागत करो। यह आदिशक्ति जगदम्बा के प्रिय पुत्र हैं।
महंथ रामनरेश सिंह एक चटाई ले आए और उसे बिछाकर स्वामी जी से चटाई पर विराजमान होने का आग्रह करने लगे।
स्वामी सुधर्मानंद ने भगवन् से कहा: प्रभु आपने इस देश को महौषधि जैसे आदर्श दिए हैं। जो भाग्य आप रच देते हैं वह समय नहीं लिख सकता है। कौन जानता है कि समय-चक्र को ऐंड़ लगाकर देवताओं के भी देवता इस धरती का भाग्य लिख रहे हैं।
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भगवन् बोले: आने वाली पीढ़ियों के लिए हर व्यक्ति को स्वस्थ-सुंदर परंपराओं का निर्माण करना चाहिए। हिन्दू धर्म के खजाने में जैसा अनमोल धन है, दूसरे धर्मों के खजाने में वैसा नहीं है। यह संसार जीवित सत्य है जो आदिशक्ति जगदम्बा की अनंत सुंदरता से निर्मित है। लेकिन यह उतना ही नश्वर भी है। स्त्रियों की सुंदरता माँ पार्वती की प्रतिच्छवि है। जो स्त्रियों को सम्मान देता है, वही उनका महत्व जानता है। एक सन्यासी के लिए हर स्त्री माँ के समान होती है। महात्मा गाँधी धर्म के मर्मज्ञ थे, अवतार थे। आजादी के आंदोलन में वह पुरूषों और स्त्रियों को समान दृष्टि से देखते थे, उनका ब्रम्हचर्य का प्रयोग अज्ञान पर आधारित और बचकाना था।
स्वामी सुधर्मानंद ने कहा: भगवन् नेता जी महात्मा गांधी के धुर आलोचक माने जाते हैं।
भगवन् बोले: ऐसा नहीं है। सुभाष चंद्र बोस महात्मा गाँधी का बहुत सम्मान करते थे। 1944 में बर्लिन में आई0एन0ए0 को संबोधित करते हुए उन्होंने महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहकर उनका आशीर्वाद माँगा। अपनी पुस्तक ’इंडियन स्ट्रगल’ में सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गाँधी की नीतियों की आलोचना जरूर की है, लेकिन सुभाष ने अपने विचार में संशोधन किया, उन्होंने पाया कि केवल महात्मा गाँधी स्वाधीनता आंदोलन को शिखर पर पहुँचा रहे हैं। अपने हर कदम के साथ वह इतिहास का नया अध्याय निर्मित कर रहे हैं। वह हिमालियन राजनेता थे।
हरिशचंद्र ने भगवन् से कहा: भगवन् आप के धरती पर होते हुए भी लोग इतना कष्ट पा रहे हैं। कभी-कभी बहुत सी चीजें पहेली जैसी लगती हैं।
भगवन् बोले: संसार को जिस तरह देखोगे, उसी तरह दिखाई पड़ेगा। भगवान कृष्ण पूरे मनोयोग के साथ पांडवों, मानवता और धरती के साथ थे, भगवान के हस्तक्षेप के बावजूद हर व्यक्ति अपनी कर्म-श्रृंखला का परिणाम कुछ न कुछ भोगने को मजबूर था।
महात्मा गाँधी को दैवीय रूप देने की बात नहीं है, लेकिन वह वास्तव में ईश्वर की बहुत बड़ी अभिव्यक्ति थे। अवतार-पुरूष थे।
भगवन् ने स्वामी सुधर्मानंद से कहा - सनातन धर्म, जिसमें जाति-पाँति न हो, साम्प्रदायिक भेदभाव और स्त्रियों के प्रति भेदभाव न हो, अंधविश्वास और संकीर्णता न हो, समानता हो, विश्ववंधुत्व हो, उत्थान और शांति हो, ऐसे सनातन धर्म के प्रचार की जरूरत है। कथावाचक या बहुत से उपदेशक जिस सनातन धर्म का प्रचार कर रहे हैं, वह तमाम बार समय से पीछे का होता है। स्वामी विवेकानंद से दृष्टि लेने की जरूरत है। बुद्ध, शंकर और विवेकानंद, महात्मा गाँधी को समाहित करते हुए उनसे भी आगे बढ़कर हिन्दू धर्म की व्याख्या और उसके प्रचार-प्रसार की जरूरत है।
प्रकृति और मानवजाति की अकूत सुंदरता बिखरी पड़ी है। गृहस्थ आश्रम हिन्दू सभ्यता को अक्षुण्ण गौरव और खूबसूरती दे सकता है।
स्वामी सुधर्मानंद ने हाथ जोड़कर भगवन की वंदना की: आप की कृपा से सब कुछ संभव है, प्रभो।
तव इंगिति पै सब कहु होई।
यह रहस्य जानत कोइ कोई।।
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लौटते हुए रास्ते में स्वामी सुधर्मानंद ने हरिशचंद्र से कहा - निस्संदेह भगवन् सुभाष चंद्र बोस हैं। मैंने समाधि में स्पष्ट देखा कि स्वयं भगवान संन्यास में हैं। सन्यासी अपने अतीत के प्रचार-प्रसार से विरत हो जाता है, लेकिन वह भगवान हैं, संसार के सारे नियम उनसे हैं, वह नियमों में नहीं बंधे हैं। मोक्षदाता हैं। समय आने दो, जब संसार यह जानेगा कि वह महज भारत के ही नेताजी नहीं बल्कि विश्व के नेता जी हैं और संसार के खूबसूरत भविष्य की रक्षा के लिए एक साधु के रूप में किस तरह वह कुटिया में कठिन तपस्या करते रहे। अभी कोई कैसे दावा कर सकता है कि भगवन् नेता जी हैं। इसका प्रमाण तो भगवन् के पास है और भगवन् जब तक देह में हैं, प्रमाणित करने जा नहीं रहे हैं। अपनी लीला वही जानें। जब वक्त आएगा तार से तार जुड़ता चला जाएगा।
पंडित श्याम बिहारी व्यास भगवती तपेश्वरी के उपासक हैं। वह प्रतिदिन आश्रम में दुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं और पं0 राधेश्याम तिवारी के साथ भगवती तपेश्वरी की विधिवत अर्चना करते हैं। सायंकाल व्यास जी पं0 राधेश्याम के साथ भगवन् की आरती उतारते हैं स्वामी जगन्नाथ जगदीश जग में व्यापि रहे। व्यास जी भगवन् के अत्यंत स्नेहिल शिष्य हैं। एक दिन भगवन् ने व्यास जी और उनकी पत्नी आशा देवी को बुलाया और कहा: आदिशक्ति जगदम्बा की कृपा तुम्हारे घर बरस रही है। वह अपना चुना हुआ संत तुम्हारे पुत्र के रूप में भेजने जा रही हैं। आशा देवी अभिभूत हो गईं कि उनकी कोख से किसी संत का जन्म होने वाला है।
व्यास जी गदगद होकर बोले: भगवन् आदिशक्ति की इस कृपा का कारण है कि मैंने नित्य यहाँ की धूल को अपने मस्तक पर धारण किया। कुछ वर्षो बाद एक दिव्य संतान का जन्म हुआ।
भगवन् ने व्यास जी से कहा - अपने इस पुत्र का नाम रखो - हरि ओम। यह हर भक्त को पवित्र बनाएगा।
आश्रम में किसी को यह इजाजत नहीं थी कि वह भगवन् का स्पर्श करे न ही भगवन् किसी का स्पर्श करते थे। वर्ष 1990 तक भक्त लोग उनका चरण-स्पर्श करते थे किन्तु वर्ष 1990 की यज्ञ के बाद भगवन् ऐसी तपस्या के व्रत में चले गये कि किसी को उन्हें स्पर्श करने की इजाजत नहीं थी। भगवन् रूपये-पैसे भी स्पर्श नहीं करते थे, किसी को यह इजाजत भी नहीं थी कि वह आश्रम में रूपया-पैसा चढ़ाए। लखनऊ की मंजू मिश्रा ने वहाँ भगवती तपेश्वरी का एक मंदिर बनवाया। लखनऊ की सविता शुक्ला और सीतापुर के रामशरन वर्मा ने उस मंदिर में नवदुर्गा की प्रतिमाएँ रखीं। महंथ रामनरेश सिंह, भगवती बाबा, पाल बाबा, ऋषिराज बाबा, शिवकुमार बाबा, भउली बाबा, संतोष बाबा, मलकार बाबा, तपसी बाबा, आदि भगवान सिंह, मूले सिंह, भक्तिन आदि आश्रम के सेवक थे। मूले सिंह (मुख्तियार) ने ही भगवन् से आग्रह करके भगवन् को मुजेहना आने के लिए आमंत्रित किया, उस समय भगवन् मुजेहना से कुछ दूर रूहियाँ गाँव के बगीचे में एक कुटिया में रहते थे। भगवन् ने यह घोषणा कर रखी थी कि यदि उन्हें कोई छू लेगा तो उनका यह शरीर क्षीण पड़ने लगेगा और वह इस नश्वर देह को त्याग देंगे। मुन्ना सिंह (लखनऊ, सुल्तानपुर निवासी) तपेश्वरी धाम के बहुत बड़े भक्त हैं। उनकी माँ भगवन् के प्रति अगाध भक्ति रखती थीं। भगवन उनके गाँव सुल्तानपुर में कुछ समय रह चुके थे।
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सुल्तानपुर के सेठ पन्ना लाल भगवन् के बहुत बड़े भक्त थे। वह आश्रम में नवरात्रि के समय हर वर्ष बहुत बड़े भंडारे का आयोजन करते। सेठ पन्ना लालजी के बाद उनके बेटे स्वामी हरिओम जी के अनन्य भक्त बने और अपने पिता की तरह ही आश्रम के धार्मिक कार्यो के सम्पादन में सहयोग देते रहे। मुजेहना के हरिनाम सिंह, राकेश गुप्ता की माँ, अजय मेहरोत्रा, बिसवाँ के विनय मिश्रा, सीतापुर के रंजय शुक्ला नन्हकऊ, नैपाली, शोभाराज, बिसवाँ के राकेश गुप्ता जी के पुत्र मोनू आश्रम के अनन्य भक्त हैं। ये लोग भगवन के निर्वाण के पश्चात् महायोगी स्वामी हरिओम जी के शिष्य बने और तपेश्वरी धाम के कार्यो में अपना अनन्य सहयोग देते रहे। प्रोफेसर की बहनें-विभा, शशि, कनक, कंचन, विद्यावती अपने परिवारों के साथ भगवन् से दीक्षा प्राप्त कीं। हरीश चंद्र, इंजीनियर प्रेमनारायण कटियार, राजकुमार मिश्रा, ऋषिराज चतुर्वेदी ने भगवन् से दीक्षा वर्ष 1990 में लिया और प्रोफेसर ने भगवन् से दीक्षा वर्ष 1991 में लिया। भगवन् ने कंचन को खड़ाऊँ और गीता देकर अपना आर्शीवाद दिया। भगवान शिव की अनन्य भक्त शशि के पुत्र पीयूष को भगवन् ने आत्यंतिक आर्शीवाद दिया। दिवंगत बहिन मिथिलेश जो आदिशक्ति दुर्गा की अनन्य भक्त थीं, अपने परिवार पर अपनी दैवीय अनुकंपा की वर्षा करके प्रेरित किया और उनके बच्चे भगवन् की शरण में गए।
सुदूर शहरों और गाँवों से बहुत से भक्त भगवन् के दर्शन के लिए आए हुए हैं। पेड़ो की शाखाएँ पाले की मारी हैं। पत्तियाँ ठंड से काँप रही है। कुहरीला धुंध चारो तरफ छाया हुआ है। कभी-कभी हवा सीटी बजाते हुए कुलेल कर रही है।
रूई फाह अस धुंध जो व्यापा। तरूवर बेलि-बेलि पर काँपा।।
हँसि हँसि कुसुम-बेलि अलवेली।। मलय-पवन करही अठखेली।।
प्रकृति प्रसन्न निछावर जाही। भगवन चरन-कमल-उर माँही।।
हिमगिरि शोभा ज्यों चलि आई। भगवन निकट कैलाश ललाई।।
अशोक भट्टाचार्य भगवन् के दर्शन के लिए मुजेहना गए। वह आत्यंतिक आनंद की अनुभूति कर रहे थे। भगवन् के पास बैठते ही उन्होंने महसूस किया कि उनके उच्च आध्यात्मिक विचार पुष्पों की तरह जैसे खिल आए हों। वह बुदबुदाए: अरे, भगवती दुर्गा की कृपा से मैं क्या देख रहा हूँ। भगवन् अपने रूप-स्वरूप में नेताजी से शत-प्रतिशत मेल खाते हैं। उस समय वह भाव विभोर हो उठे। ठंड और कुहरीले मौसम में आश्रम में एक साधु काली का नाम जपते हुए भजन कर रहा है।
काली काली हे माँ काली। भव तारिनि पापहिं जग व्याली।
काली-काली हे माँ काली। लास्य करहिं माँ भुवनहिं माली।।
भगवन् बोले: बंगाल में काली-पूजा बहुत प्रचलित है। बंगाल ने यह सिखाया कि स्त्रियों का आदर कैसे किया जाए। लेकिन नवरात्र में वहाँ कुछ अधिक ही आडम्बरपूर्ण हो जाता है। जब स्वामी रामकृष्ण परमहंस का अवतार हुआ तब उनकी भक्ति के प्रताप से काली पूजा अधिक लोकप्रिय हो गई। बंगाली हृदय से कोमल होते हैं, लेकिन अपने शाक्त मत के साथ उनका वैष्णव होना अब भी शेष है।
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बहुत से भक्तों ने अपने लाइलाज कष्टों से मुक्ति के लिए फरियाद किया। बहुत से ऐसे भक्त आए थे जो भगवन् की कृपा से लाइलाज बीमारियों, आपदाओं से मुक्त हो प्रसन्न जीवन जी रहे थे। भगवन् आए हुए भक्तों को सांत्वना देते हुए बोले: अब प्रसन्न होकर जाओ। अपने हर भक्त के कष्टों का जहर मैं स्वयं पी लेता हूँ।
फैजाबाद से आए हुए एक भक्त ने पूछा: भगवन् नेता जी महात्मा गाँधी के स्वाधीनता आंदोलन को और सुंदर तथा शक्तिशाली रूप देने में सक्षम थे। फिर उन्होंने महात्मा से अलहदा रास्ता-ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ युद्ध का, क्यों अपनाया।
भगवन् बोले: वहमहात्मा गांधी शुद्ध अहिंसावादी थे , नेता जी को रह रहकर अपने विष्णु रूप का चक्र सुदर्शन याद आ जाता था, हालाकि वह स्वरूप उन्हे पूरी तरह प्रकट नहीं करना था । ( भगवन हँसते हैं ) जाॅन व्हिस्क ने कहा था अजेय तलवार के बल पर ब्रिटिश साम्राज्य यहाँ कायम हुआ है और तलवार के बल पर ही जारी रहेगा। नेता जी ने युद्ध का रास्ता अपनाकर उसकी बात का सटीक जवाब दिया था। अंग्रेज शॅायलाक थे, जो हिन्दुस्तान का हृदय माँग रहे थे। महारानी लक्ष्मीबाई ने जो गौरवपूर्ण अद्वितीय पराक्रम से सम्पन्न क्रांति की शुरूआत की, नेता जी ने उसे आगे बढ़ाते हुए पूरा किया। जब भगवान् विष्णु के तेइसवे अवतार महात्मा गांधी की हत्या हुई तो भगवान विष्णु के चौबीसवें और पूर्णावतार नेता जी वनवास में चले गये। इस समय दुनिया में राजनीति अहंकार और लोभ का महासमर बन गयी। अब तो भगवान् शिव की तीसरी आंख खुलने का वक्त धीरे धीरे नजदीक आ रहा है।
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की सबसे पहले अलख जगाने वाली महानायिका महारानी लक्ष्मीबाई थीं। वह ऐसी वीरांगना थीं, जैसा कि इस संसार ने कभी नहीं देखा।
कोलकाता से आए हुए एक भक्त बोले: भगवन् आप सब कुछ करने में सक्षम हैं, इसके बावजूद यह देश अपने भाग्य पर क्यों छोड़ा हुआ है। अधिकांश अधिकारियों और राजनेताओं को देश से कोई मतलब नहीं है। उनकी गिद्ध दृष्टि केवल एक दूसरे तक पहुँचने वाले धन पर रहती है। वे छिपी हुई डकैती कर रहे हैं।
भगवन् ने कहा: भगवान कृष्ण अर्जुन से बोले, यद्यपि मैं सब कुछ करने में सक्षम हूँ लेकिन उसके लिए तुम्हें माध्यम बनना चाहिए। यहाँ इस समय कोई अर्जुन नहीं है। समय प्रतीक्षारत है। संसद या विधायी संस्थाओं को गंगा जैसा पवित्र होना चाहिए। लेकिन वे दुर्भाग्यवश भ्रष्टाचार के दुर्गन्ध से भरे हुए हैं। दुनिया के महीयसी और महापुरुष राजनीतिविदों ने जैसे लोकतंत्र का स्वप्न देखा, यहाँ उस हद तक भी कोई चिन्तित नहीं होता है।
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भगवान कृष्ण ने दुर्योधन को बहुत समझाया लेकिन उसने एक न सुनी। भगवान कृष्ण अर्जुन से बोले अर्जुन अब मैं बढ़ा हुआ महाकाल हूँ और कौरव राख के ढेर में तब्दील हो जाएँगे।
अनूप जी हरिद्वार में रहते हैं। वह बुद्धिमान और विरागी है। वह राजयोग में जाना चाहते हैं। उनके माता-पिता चाहते हैं कि वह विवाह कर लें लेकिन वह हमेशा मना करते रहे। वह मुजेहना भगवन् के दर्शन के लिए आए हैं कि भगवन् के सानिध्य में रहकर भक्ति का मर्म समझ लें। अनूप जी के सम्बन्धी इस आशा में भगवन् के पास आए हुए हैं कि भगवन भटके हुए व्यक्ति को सही राह पर ला देंगे। अनूप जी ने भगवन् से कहा: प्रभु मैं संसार से विरक्ति महसूस करता हूँ। संसार छोड़कर संन्यासी बनना चाहता हूँ।
भगवन् बोले: दुख का स्रोत आसक्ति है। तुम बुद्धिमान हो, लेकिन मैं से विरक्ति का अनुभव करो, संसार से नहीं। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा: यह ब्रम्हांड ही मेरा शरीर है। देखो तभी तो संसार में चकाचौंध करने वाली खूबसूरती है।
सन्यासी को इस संसार में कर्म, भक्ति और ज्ञान लेकर रहना चाहिए।
भगवन् ने कहा - जो मेरे पास आते हैं और मेरी भक्ति करते हैं, वे यदि चाहेंगे तो मैं उन्हें मोक्ष भी दे सकता हूँ। तुम पैदाइशी सन्यासी हो, अनिश्चितता छोड़ो।
अनूप जी हरिद्वार में संन्यासी हो गए, उनका नाम सच्चिदानंद पड़ा।
बहराइच के श्यामलाल भगवन के अनन्य भक्त हैं। वह भगवन् के लिए आई.एन.ए. का ड्रेस मूँज के धागे से बुनकर तैयार करते हैं और प्रतिवर्ष 23 जन0 को भगवन् को भेंट करते हैं। श्याम लाल भगवन को नेता जी मानते हैं।
वर्षो पहले एक भक्त ने भगवन् से उनका जन्म दिन पूछा तो भगवन् ने 23 जन0 1897 बताया। वही लम्बाई, वैसा ही चेहरा और ओजस्वी व्यक्तित्व देखकर वह भक्त बड़ा प्रसन्न हुआ कि वह संसार के नेता भगवन् के पास बैठा हुआ है।
इंजीनियर प्रेम नारायण कटियार जब हरिश्चंद्र, बाबा सुरेन्द्र चौधरी और अन्य लोगों के साथ भगवन् के दर्शन के लिए गए तब से वहीं के भक्त बनकर रह गए। भगवन् कटियार साहब को बहुत स्नेह करते थे। इंजीनियर कटियार साहब भगवन् को नेता जी मानते थे। उन्हें बहुत सी अनुभूतियाँ हुई। वह आश्रम के भंडारे में अपना सहयोग देते रहते हैं।
विसवां के राकेश गुप्ता जी सीतापुर के रंजय शुक्ला और अनेक भक्त नवरात्र में तपेश्वरी धाम तीर्थ में भंडारा आयोजित करते रहते हैं।
गुजरात के जालंधर शहर में एक वृद्ध माताजी कमला जी रहती थीं। स्वप्न में भगवन् उनको दर्शन देकर बोले-मुजेहना आश्रम में आओ। आदिशक्ति जगदम्बा की सेवा करो। यह कहकर भगवन् अंतर्ध्यान हो गए। माताजी अधीर हो उठीं यह सोचकर कि मुजेहना आश्रम कहाँ है। दिन में वह रिक्शे से सब्जी लेने जा रही थीं। रिक्शे वाले से माताजी ने पूरी चर्चा की, तो रिक्शे वाला बोला - अरे माताजी मेरा घर मुजेहना में ही तो है। आप स्वप्न में जिन भगवन को देखीं, तो हमारे गाँव में भी एक मौनी बाबा रहते हैं, लोग उनको भगवन् कहते हैं। माता जी के मन में बात बैठ गई, उस रिक्शे वाले से उन्होंने मुजेहना पहुँचने का रास्ता पूछा और मुजेहना आकर जब भगवन् को देखा तो भाव विहवल होकर भगवन् की प्रार्थना करने लगीं। उन्होंने आश्रमवासियों को यह वृत्तांत सुनाया। माताजी को भगवन का विशेष स्नेह प्राप्त था। वह जालंधर से अक्सर तपेश्वरी धाम आने लगीं और भंडारे आदि का आयोजन करने लगीं।
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हरिशचंद्र के बड़े भाई ईश्वर चंद्र बहराइच में रहते हैं। वह भगवान राम के पक्के भक्त हैं। अयोध्या उन्हें सर्वाधिक प्रिय है। वह भगवन के दर्शन के लिए मुजेहना गए। भगवन् ने आर्शीवाद में हाथ उठाया। ईश्वर चंद्र हृदय में हमेशा राम-राम जपते रहते।
सर्वज्ञ भगवन् बोले: तुलसीदास जैसा संत कवि न हुआ न होगा। उनका रामचरितमानस अद्वितीय ग्रंथ है, जो भक्ति के साथ निर्मल कर्म करते हुए इसका गायन करता रहता है उसे भगवान् राम के दर्शन मिलते हैं।
भगवान राम ने बालि से कहा: मैं सम्पूर्ण पृथ्वी और यहाँ तक कि समस्त ब्रम्हांड पर शासन करता हूँ। व्यक्ति के कर्म के अनुसार मैं उसका भाग्य रचता हूँ। मैं अपनी योगमाया सीता के साथ प्रत्येक कण में विराजमान हूँ। जो मेरी भक्ति में रहते हैं, उनकी पूरी जिम्मेदारी मैं वहन करता हूँ।
हरिशचंद्र जब इंदिरा नगर ए ब्लाक में रहते थे तो आई0सी0 श्रीवास्तव उनके पड़ोस में रहते थे। एक बार वह हरीश श्रीवास्तव के साथ भगवन के दर्शन के लिए मुजेहना गए। जब वे आश्रम पहुँचे तो अँधेरा हो चुका था। भगवन की कुटिया में लालटेन टिमटिमा रही थी। भगवन बी0बी0सी0 न्यूज सुन रहे थे। वे भगवन् की महिमा का स्मरण करते हुए आश्रम की धूलि अपने मस्तक पर लगाए। धुंध भरी हल्की रोशनी में आई0सी0 श्रीवास्तव ने भगवन को देखा। वह इस बात से स्तब्ध रह गए कि भगवन का स्वरूप नेता जी सुभाष चंद्र बोस जैसा प्रतीत होता है। महंथ उनके साथ थे, भगवन् ने महंथ रामनरेश सिंह को उन दोनों के भंडारा में प्रसाद पाने और सोने की व्यवस्था करने को कहा। मंहथ जी ने वैसा ही किया।
सोते समय आई0सी0 श्रीवास्तव के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी कि क्या भगवन् नेता जी सुभाष चंद्र बोस हैं। भोर में जब वह उठे और भगवन की कुटिया के पास वंदगी लगाने गए तो यह देखकर स्तब्ध रह गए कि भगवन् श्याम लाल द्वारा भेंट किए हुए मूँज के फौजी ड्रेस में खड़े हुए हैं। अब सारा संशय जाता रहा, वह जान गए कि भगवन् नेता जी ही हैं।
सीतापुर की सुधा पांडे भगवन् की अनन्य भक्त हैं। एक बार उन्होंने भगवन् से उनकी कुटिया के स्थान पर भव्य आश्रम बनाने की इच्छा जाहिर की। उनकी दृढ़ आस्था थी कि भगवन् नेताजी हैं।
भगवन् ने उनसे कहा: भगवान राम अपने निर्वासन में कुटिया में रहे। महात्मा गाँधी कुटिया में रहे। जब तक मैं जीवित हूँ यहाँ मंदिर की जरूरत नहीं है।
सुधा पांडे ने भगवन् के निर्वाण के बाद उनकी समाधि का आरंभिक निर्माण कराया। लखनऊ, इस्माइलगंज के आर0पी0 मिश्रा भगवन् के दर्शन के लिए अक्सर जाते रहते थे। अपने पूरे परिवार के साथ वह भगवन के अनन्य भक्त थे, वह अपनी बेटी की शादी के लिए चिन्तित थे, भगवन् ने उन्हें आर्शीवाद दिया और उनकी दोनों बेटियों का विवाह ऊँचे घराने में हुई।
भगवन् ने कहा -वे मुझे परम प्रिय हैं। गौरांग महाप्रभु अक्सर कहा करते थे: भगवान के भक्तों की सेवा का अर्थ है भगवान की सेवा करना। भगवान राम ने हनुमान को अपने से अधिक महत्व दिया। भगवान हनुमान के आशीर्वाद से मोक्ष मिलता है।
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प्रोफेसर के बड़े भाई राजेश कुमार श्रीवास्तव भगवन के दर्शन के लिए मुजेहना गए। वह दिल्ली में रह रहे थे। वह गृहस्थी के अत्यधिक श्रम से थके माता-पिता के सबसे बड़े सेवक थे। खेत-खलिहान में राजेश सदा अपने पिता के पीछे लगे रहते। सर्वज्ञ भगवन ने राजेश सेे कहा: तुम महान कर्मयोगी हो। जो अपने माता-पिता की सेवा करते हैं, वे स्वर्ग में निवास करते हैं। प्रत्येक को अपने माता-पिता भाई-बहिन और सगे-संबंधी के प्रति अपने कर्तव्य करने चाहिए, यदि वे तुम्हें हानि नहीं पहुँचा रहे हैं।
प्रोफेसर को बचपन में दुर्घटना के कारण बायें पैर में क्राॅनिक आस्टियोमोलाइटिस हो गया। उनके पैर का तीन बार आपरेशन हुआ लेकिन पैर ठीक नहीं हो रहा था। डाक्टरों ने शंका व्यक्त की कि उनका पैर बच पाएगा। हरिशचंद्र अपनी अच्छी और बहुत ही मृदु स्वभाव वाली सरोज श्रीवास्तव पत्नी के साथ पूरे परिवार के प्रति सदा समर्पित रहते।
भाग्य प्रोफेसर के जीवन में अंधकार भरने जा रहा था क्योंकि वह अपना पैर गँवाने के कगार पर थे। वह अपने आध्यात्मिक गुरू और जीवन के सर्वस्व भगवन् के पास गए। वह चिन्तित थे पर भगवन् से कुछ नहीं बोले। भगवन् ने प्रोफेसर के स्वास्थ्य की दयनीय दशा देखी और अपनी करूणा बरसाते हुए उनसे बोले: अब तुम इन्हीं पैरों से पहाड़ चढ़ोगे। भगवन् योगियों के योगी थे, इसलिए भक्त और सिद्ध महात्मा तक उन्हें संत सम्राट और भगवन कहते, भगवन् अष्ट सिद्धियों ऋद्धियों के स्वामी होते हुए परमात्मा से एक थे।
भगवन् का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद प्रोफेसर का पाँव चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गया। वह पहाड़ों पर भ्रमण करने लगे। हिमालय उन्हें बहुत प्रिय है।
भगवन् अपनी कुर्सी पर विराजमान हैं। फूस की कुटिया में उनके बैठने-चलने का ठंग राजाओं जैसा होता है। वह हमेशा चश्मा और घड़ी पहनते। नियमित बी0बी0सी0 न्यूज सुनते और नियमित वट वृक्ष के नीचे घनघोर ठंड में, गर्मी में, वर्षा में समाधि में बैठे रहते। महज दो या तीन घंटे रात्रि में अपनी आराम कुर्सी पर अधलेटे विश्राम करते। अपने लिए कुट्टू की दो चपाती स्वयं मिट्टी के चूल्हे पर सेंकते। गायों को चराना, उनके लिए भूसा-पानी की व्यवस्था करना पाल बाबा की जिम्मेदारी थी, वह एक पाव दूध भगवन् को दे जाते।
भगवन् जिस कुर्सी पर बैठते हैं, उसके हत्थे पर लिखा है गाँधी-सुभाष चंद्र बोस पंथी संत। कुछ साधु और कथावाचक भगवन् के दर्शन के लिए आए हुए हैं। गुजरात, बंगाल, उड़ीसा, यू0पी0, एम0पी0, आदि प्रांतों के शहरों से भक्तगण भगवन् के दर्शन के लिए आए हुए हैं।
भोपाल से आए हुए एक भक्त ने भगवन् से कहा: स्वामी जी, आप की महिमा कितना रहस्यमय है। देश के कोने-कोने से भक्त यहाँ आते हैं। लेकिन सामान्यतः लोग इस स्थान के बारे में नहीं जानते। लोगों में इस स्थान की प्रसिद्धि नहीं। एक भी चमत्कारिक लाभ भक्तों की भीड़ लगा देती है, और यहाँ तो आप कितने ही लाइलाज लोगों, आपदाग्रस्त लोगों को विपत्ति से छुटकारा दिलाते रहते हैं, फिर भी यह स्थान गुमनाम क्यों है।
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भगवन् बोले: बहुत लम्बे समय तक मैं हिमालय में और हिमालय से नीचे उतर सुदूर शहरों में, गाँवों में तपस्या करता रहा, जहाँ भीड़ होती है, वहाँ तपस्या नहीं हो पाती है। जो सूर्य छिपा सकता है वह लोगों की आँखे और कान बंद भी कर सकता है। यहाँ वहीं भक्त आ पाता है, जिसे मैं चाहता हूँ।
उज्जैन से आए हुए एक साधु ने बंदगी लगाकर भगवन् से पूछा - प्रभु, हमारा कर्तव्य क्या है?
भगवन् बोले: ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राजाराम मोहन राय, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी आदि हजारों महापुरूषों और महान् स्वाधीनता-नायिकाओं के हिमालय जैसे श्रम से यह देश किसी हद तक अंधविश्वासों से मुक्ति पा सका है। अंधविश्वास प्रायः धर्म के क्षेत्र से फैलता है। बहुत से साधू और कथावाचक अपनी अल्पज्ञता के कारण ऐसे अंधविश्वास को जन्म देते हैं। यदि कोई साधू धन बटोरने में लगा है और ठगी में लगा है , अनाचारी शासकों की चाटुकारिता करता है , धर्म के शीलाें का उल्लंघन करते हुए पुरुष स्त्री और विभिन्न मानव समूहों के बीच घृणा - द्वेष और भेदभाव पूर्ण उत्पीड़न का पोषण कर रहा है , वह साधु हो ही नहीं सकता , वह तो साधु के वेश में दुष्ट है , वह विधिक ढंग से दंड का पात्र है । शासक को जनता के बीच जाति, लिंग , मजहब , पंथ , क्षेत्र आदि के आधार पर भेद नहीं करना चाहिए , उसे जनता को संतान , सुह्रद , मित्र की तरह मानते हुए हमेशा उसके उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए । मानव सभ्यता के इतिहास में दुनिया में ऐसे शासकों की बहुसंख्या मिल जाएगी जिनके साथ संत कबीर की यह वाणी लागू होती है -- कथनी मीठी खांड सी करनी विष की लोय कथनी तजि करनी करै विष से अमृत होय बातें तो खाड़ ( गुड़) की तरह मीठी हैं लेकिन कार्य विष के समान है , यदि मनुष्य कार्य भी अपनी मीठी वाणी और ऊंचे ऊंचे आदर्शों की हांक की तरह करने लगे तो सब कुछ अमृतमय हो जाए । तो उसे जेल में डाल देना चाहिए। सभी स्त्रियाँ जगदम्बा की छवि हैं, उनका सम्मान न करके जो उन्हें धोखा देते हैं, उनके साथ बलात्कार करते हैं, उन्हें जेल में डालकर बड़ी सख्त सजा देनी चाहिए। किसी दुर्दांत अपराधी को जेल में रखकर उसकी सुरक्षा के ऊपर पब्लिक की खून-पसीने की कमाई खर्च करना मूर्खता है। उसे महीने भर के अंदर ही फांसी दे दी जानी चाहिए। जो कैदी दुर्दान्त अपराधी नहीं हैं उन्हें जेल में सुधार संबंधी सारी सुविधाएँ देनी चाहिए। जब नेताजी मांडले जेल में थे तो उन्होंने सोचा था जेल में क्या-क्या सुधार लागू होने चाहिए। दुर्भाग्य यह कि आज सुविधाएँ राजनीतिक अपराधियों और माफियाओं को दी जाती है जो तत्काल फाँसी के हकदार है। जैसे उद्योगपति धन बटोरते हैं, वैसे धर्मस्थलों और व्यासपीठों को धन नहीं बटोरना चाहिए। धर्मस्थल और व्यासपीठ बड़े पवित्र होने चाहिए। धन के कोशागार नहीं। धन बटोरने वाले मंदिर, व्यासपीठ, गंगा जैसे पावन धर्म को कलंकित करते हैं। जिन धर्मस्थलों के पास जरूरत से ज्यादा पैसा है, उसे गरीब गाँवों के विकास में खर्च कर देना चाहिए। । राजनीतिक पार्टियाँ जनता का अरबों रूपया विकास के नाम पर डकार जाती हैं और चुनाव में खर्च करती हैं, अपनी कितनी ही पीढ़ियों के लिए होटल, फार्म हाऊस, पेट्रोल पंप और कितनी ही सम्पत्ति खड़ी करते हैं। इन नेताओं की सोच होती है-देश जाए चूल्ही भाड़ में। जनता को चाहिए कि हर राजनेता के कार्य का सारे टी0वी0 चैनल्स बुलाकर प्रसारण करवाए, उसे कितना धन मिला और कितना कार्य हुआ। जो राजनेता कभी सरकार में रहे होते हैं, उनकी पूरी जिन्दगी का हिसाब कि कितना सरकारी धन वे कहाँ-कहाँ खर्च किए, सभी टी0वी0 चैनल्स बुलाकर जनता के सामने रखे। धर्म का मर्म महात्मा गाँधी से सीखना चाहिए। जनता तक सही और निष्पक्ष खबर पंहुचे यह मीडिया का कर्तव्य है । कर्तव्य ही धर्म का मर्म है धर्म के शीलाें -- सत्य , प्रेम , करुणा, विश्व मैत्री , दान , परोपकार , वीरता , अहिंसा , उद्यमिता, मानव जाति को अत्याचार से मुक्त करना , प्रकृति सह अस्तित्व , विद्यार्जन , संसाधनों का समुचित वितरण , शाकाहार , चर - अचर का पोषण , रक्षण , परमात्मा की भक्ति , ज्ञान का पालन ही धर्म है , यही मोक्ष तक ले जाता है। साधु का जीवन गंगा जैसा पवित्र होना चाहिए, उन्हें अपनी इन्द्रियों पर पूरा नियंत्रण हो।
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बिसवाँ के सरदार बलवीर, लखनऊ की सविता शुक्ला, रवीन्द्र तिवारी, आ0पी0 मिश्र, कृष्ण कुमार आदि भगवन् के स्नेहिल भक्त हैं। भगवती तपेश्वरी की आराधना के लिए वे प्रायः आश्रम जाया करते हैं। इन लोगों का दृढ़ विश्वास है कि भगवन् साक्षात् परमात्मा हैं। भगवन कहते थे मुझसे और इस तपेश्वरी धाम तीर्थ से उसी का नाता हो सकता है जो सत्यव्रती, निष्कपट, संसार के कण-कण में भगवान् का भाव रखने वाला सारी मानवजाति ,पशुपक्षी, प्रकृति की भलाई करने वाला,संतो-भक्तो की सेवा करने वाला,स्त्रियों का सम्मान करने वाला और भगवान् का भजन करने वाला, तपस्या करने वाला हो। सरदार बलवीर नवरात्र में होने वाले यज्ञ अनुष्ठान प्रायः कराते रहते हैं ।
दिल्ली से आए हुए एक भक्त ने कहा: भगवन् राज्य के विषय में नेताजी का सिद्धांत बहुत से चिंतको की अपेक्षाकृत कहीं आगे है।
भगवन् बोले: हम दूसरों का योगदान नहीं भूल सकते हैं। राम और कृष्ण राजनीति में भी जन सामान्य को लेकर चलते हैं। कालांतर में गणतंत्र में लोकतंत्र का बीज देखा जा सकता है । फ्रेंच रिवोल्यूशन और अमेरिकन रिवोल्यूशन से लोकतंत्र का ड्राफ्ट तैयार हो जाता है । महात्मा गांधी और नेता जी लोकतंत्र के महानायक हैं । 16वीं सदी का ज्याँ बोदाँ पूर्ण राजतंत्र के पक्ष में था, जबकि राजतंत्र के साथ निरंकुशता आएगी ही आएगी। या तो राजा जनक, अज, दिलीप, दशरथ और भगवन राम, भगवन् कृष्ण, विक्रमादित्य, चंद्रगुप्त, अशोक आदि जैसा हो। सत्रहवीं सदी में जर्मन राजनीति दार्शनिक अलथ्यूजियस बोदाँ से कहीं अधिक अंर्तदृष्टि सम्पन्न था, सामाजिक अनुबंध और दायित्व, सम्प्रभुता, सामन्तवाद और संविधानवाद के सम्बन्ध में उसके विचार आगे चलकर लोकतंत्र के दर्शन में अपना अमूल्य योगदान देते हैं। कभी-कभी थाॅमस हाॅब्स सामाजिक रहन-सहन और बदलाव के बीच अंतर्विरोधों पर बल देते हैं जब कि अल्थूजियस कह रहा था कि पारस्परिक सहयोग और रहन-सहन सामाजिक और राजनीतिक जीवन के लिए मूलभूत चीजें हैं जो मानव सभ्यता जितनी ही पुरानी हैं।
लोकतंत्र की समस्या है - संख्या का अंधा गणित। लोकतंत्र में यदि सुधार कर लिया जाए तो यह सर्वोत्तम व्यवस्था है। जाति-पाँति न हो। लिंग-भेद न हो, अल्पसंख्यक बहुसंख्यक का गणित समाप्त हो। अयोग्य, व्यभिचारी, भ्रष्टाचारी, गुंडा, माफिया का प्रवेश राजनीति में वर्जित हो। राम राज्य रटने से नहीं आ जाता है उसके लिए निःस्वार्थ पवित्र मन, बेदाग चरित्र और लोक-सेवा में निरंतर लगे रहना पड़ता है।
युधिष्ठिर से यक्ष ने पूछा - इस दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है। युधिष्ठिर बोले-हर मनुष्य प्रतिदिन देखता है कि असंख्य मनुष्य नरक में पड़े हुए असह्य यातना भोग रहे हैं, माँगने से मृत्यु तक नहीं मिल रही है, फिर भी आदमी गलत काम करने से बाज नहीं आता है। मन बंदर की तरह नचाता है। मन के गुलाम लोग ही चोरी, डकैती, हत्या, जनता का धन लूटना, घूस, लोगों को सताने का नारकीय काम करते हैं।
जैसे राजा जनक मन को वश में रखते थे, जैसे भगवान राम और महात्मा गाँधी मन को वश में रखते थे, तो उनसे राम-राज ही सम्भव था। मन का गुलाम न होने के लिए हमेशा दूसरों की भलाई का काम करना चाहिए। भगवान का भजन करना चाहिए और मन लाख बुरे काम की तरफ खींचे, उधर नहीं जाना चाहिए।
भगवान का भजन, संतो का दर्शन, लोक सेवा का काम करने से मनुष्य मन का राजा हो जाता है, फिर वह राम राज ला सकता है।
कोलकाता से आए हुए एक भक्त ने पूछा: भगवन् पं0 नेहरू हमेशा नेताजी के खिलाफ थे।
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भगवन् बोले: इतिहास कुछ सीखने के लिए होता है द्वेष या बदले का भाव रखने के लिए नहीं । व्यक्तिगत जीवन का सूत्र ही यही होना चाहिए-अच्छाइयों पर ध्यान दो। बुराई जिसके अंदर है, वही खत्म कर सकता है, दूसरा नहीं। आज अगर मुझे कोई जहर दे तो मैं उसे अमृत दूँ, अन्यथा मेरी तपस्या का क्या अर्थ रह जाएगा। इस धरती पर हजारों संत हुए, हजारों संत हैं, उनकी तपस्या के आभा मंडल से धरती पर सुख, शांति, समृद्धि रहती है। उन्हें तुम नहीं जान सकते हो, यहाँ भगवान भी आते हैं तो तपस्वियों की प्रदक्षिणा करके अपना कार्य शुरू करते हैं।
भगवान राम की अयोध्या से बंगाल को अहिंसा सीखना चाहिए। गौरांग महाप्रभु, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद जैसे ईश्वरीय महामानव बंगाल की धरती पर अवतार लिए, पर बंगाल का दुर्भाग्य है वह अपने इन देवताओं के सिखाए कुछ भी नहीं सीखता है। ये तीनों ईश्वरीय पुरूष अहिंसा, प्रेम और ज्ञान के अवतार थे। फिर तुम्हारे बंगाल में बलि प्रथा है। महात्मा गाँधी कितना यत्न किए फिर भी बंगाल पूजा में जानवर की बलि देता है, यह गलत कार्य है। आदिशक्ति जगदम्बा तो उस जानवर में भी बसती हैं, जिसे बलि में असाध्य कष्ट देते हुए तुम लोग तार देते हो, तो दुर्गा को मारकर दुर्गा की पूजा कैसे सम्भव है? जो भी निर्दोष जानवरों को काटते हैं, वे भूल जाते हैं कि इस कर्म के कारण वे भी जानवर का जन्म पा सकते हैं और उन्हें भी कसाई वैसे ही काटेगा। जो बोओगे, वही तो काटोगे, इसलिए किसी भी व्यक्ति की हिंसा नहीं करनी चाहिए। सैनिक हिंसा नहीं करता है, यदि वह अपने राष्ट्र के आदेश पर लड़ता है। लेकिन जैसा हिटलर के सैनिकों ने हिटलर के आदेश से यहूदियों को गैस चैम्बर में मृत्यु दंड दे रहे थे, वैसा करना नारकीय कर्म है। सैनिक देश सेवा के लिए है और देश सेवा किसी कौम से घृणा पर नहीं आधारित होती है बल्कि आततायियों, अत्याचारियों को दंडित करने में होती है। पेरिस स्थापत्य, साहित्य, कला और संस्कृति को जिस तरह सहेजने के लिए प्रसिद्ध है उसी तर्ज पर बंगाल का विकास होना चाहिए पर वह बहुत पिछड़ा है।
हरद्वार से आए हुए एक भक्त ने पूछा: स्वामी जी आप का मिलन अपने आध्यात्मिक गुरू से कब हुआ। मेरे अध्यापक बता रहे थे कि आध्यात्मिकता और कला-संगीत के बीच गहरा संबंध है।
भगवन् बोले - मैं स्वयं अपना गुरु हूं ।जब मैं पन्द्रह वर्ष का था, तब मैनें स्वामी विवेकानंद जी की पुस्तकें पढ़ी। वे हमारे लिए वरदान साबित हुईं। आत्मा को जाग्रत करने वाले स्वामी जी के विचार ही मेरे गुरू बन गए। मैं स्वामी विवेकानंद को गुरू मानने लगा। संगीत और गीत ऐसी दैवीय कला है जो भगवान के स्वागत के लिए हृदय-कमल खिला देती है।
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भगवान से निकटता महसूस करने के लिए एकांत में बैठना चाहिए, उस समय प्रकृति अपनी दैवीय कला और अपार सौन्दर्य राशि को हृदय में भरने के लिए खोल देगी। जब मैंने महाकवि कालिदास की, मेघदूत, रघुवंशम, ऋतुसंहार, ऋषि वाल्मीकि का रामायण, व्यास का श्रीमदभागवत और वर्डसवर्थ की कविताएँ डैफोडिल्स, सोलिटरी रीपर आदि पढ़ा तो मैनें महसूस किया कि अपनी आत्मा को प्रकृति के सागरीय सौन्दर्य में गहरे डुबो देने की जरूरत है। वह परमात्मा की अनंत महिमा तक पहुँचने में मेरी मदद करेगा और वैसा ही हुआ।
प्रोफेसर की माँ सुशीला और पिता रामलाल भगवान शिव के अनन्य भक्त थे, उनके बगीचे में पुश्तैनी शिव-परिवार का मंदिर है। राम लाल और सुशीला भगवान शिव-पार्वती की उपासना के लिए नित्य मंदिर जाते हैं। उनका पूरा जीवन गाँव (नरायनपुर) के कल्याण के लिए समर्पित था। वे प्रायः प्रति वर्ष अयोध्या चौदह कोसी परिक्रमा करते। वे भगवन् के दर्शन के लिए मुजेहना गए। वे भगवन् का दर्शन करके आनंद विभोर हो उठे। उन्हें यह महसूस हुआ कि साक्षात भगवान शिव उनके सामने खड़े हैं। भगवन् बहुत खुश होकर उनका स्वागत किए जैसे कोई अपनी बिछुड़ी संतान का स्वागत करता हो। राम लाल ने भगवन से दीक्षा के लिए प्रार्थना की।
भगवन् ने कहा: मैं तुम दम्पति के पीछे छाया की तरह रहता हूँ। तुम वीर भक्त हो। अब सारी बाधाएँ खत्म हो जाएँगी। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा: मेरा भक्त मुझे जो भी समर्पित करता है-फूल-पत्तियाँ, जल, यज्ञ आदि, मैं वह सब प्रेमपूर्वक ग्रहण करता हूँ। भगवन ने राम लाल दम्पति को तुलसी की कुछ पत्तियाँ देकर दीक्षा दिया, कहा-हरिओम, हरिओम जपो।
उन दिनों भगवन् अपनी कुर्सी के पीछे दो काष्ठ पट्टिकायें लगा रखी थीं। एक पर लिखा था-हरिओम। दूसरे पर लिखा था-परमात्मा की भाषा मौन है। कोई नहीं जानता था कि वह समय आ रहा है जब हरिओम जी भगवन् की जगह बैठेंगे।
कुछ समय बाद राम लाल को कैंसर हो गया। डाक्टरों ने बताया अब स्थिति नियंत्रण के बाहर है। यह जानकर कि अब धरती छोड़ने का समय आ गया है रामलाल सुशीला के साथ मुजेहना आश्रम गए, सबसे छोटी बेटी विभा भी साथ थी। वहाँ भगवन् के सान्निध्य में वे कुटिया बनाकर एक माह तक कल्पवास किए। अब तक रामलाल की तीसरे नम्बर की बेटी शशि प्रभा अपने पति महेन्द्र और बच्चों दिव्या, पीयूष, प्रज्ञा, सत्या के साथ भगवन् से दीक्षा ले चुकी थीं। हरीश चंद्र की पत्नी सरोज और बेटे राहुल, निखिल और नीलाभ और बहिन कनक का परिवार, विजय, श्रीष, शिवा, वैष्णवी, गौरी, जान्हवी भगवन् के शिष्य बन चुके थे।
हरिशचंद्र के बहनोई विजय (बहराइच) बीमार पड़े। के0जी0 मेडिकल काॅलेज में भर्ती कराए गए। डाक्टरों की राय में पैरालिसिस के इस अटैक के बाद नार्मल जीवन असंभव है। निराश होकर हरिशचंद्र छोटे भाई प्रोफेसर के साथ मुजेहना भगवन् की शरण में पहुँचे।
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उस समय भगवन् वट वृक्ष के नीचे समाधि में बैठे हुए थे। जब वह लगभग 3 बजे समाधि से उठे महंथ राम नरेश सिंह टाटी के बाहर से आवाज दिए: भगवन् बाहर आए। भक्त लोक गदगद होकर बंदगी लगाए। वे आश्रम की धूलि अपने मस्तक पर लगाए।
भगवन् ने पहले हरिशचंद्र और प्रोफेसर को बुलाया और समस्या पूछी हरीश ने सब कुछ विस्तार में बताया। भगवन् ने आर्शीवाद में हाथ उठाते हुए कहा: भगवान सबसे बड़ा डाक्टर है। तुम्हारा सम्बन्धी ठीक हो जाएगा और नार्मल जीवन जिएगा।
भगवन् की करिश्माई दैवीय महिमा शब्दों से परे है। विजय ठीक हो गए।
प्रोफेसर, पत्नी सीमा, बेटे नीलेश के साथ भगवन् के दर्शन के लिए गए। वे भगवन् के सामने बैठे थे। सीमा के मन में विचार आया भगवन् अपनी दिनचर्या के लिए कुटिया में भला क्या सामान रखते होंगे। अंतर्यामी भगवन् बिना एक भी क्षण विलम्ब किए प्रोफेसर को अपने पूरे परिवार सीमा, नीलेश, कंचन, विजय, कनक के साथ कुटिया में आमंत्रित किया। भगवन् बच्चों जैसी खुशी से भरे हुए थे। भगवन् ने वह वट वृक्ष दिखाया, जिसके नीचे वह साधना में बैठते हैं। एक आराम कुर्सी थी। रेडियो टंगा हुआ था। भगवन् ने वह मिट्टी का चूल्हा दिखाया जिस पर वह अपना फलाहार पकाते हैं। स्वामी रामकृष्ण परमहंस, शारदा माँ और भगवती काली की एक छोटी सी फोटो दिखाया। देह छोड़ने के पहले यही फोटो उन्होंने प्रोफेसर को आर्शीवाद के रूप में दिया। सभी बाहर आ गए और भगवन् की कुर्सी के सामने बैठ गए। भगवन् ने अपने हाथों से खाँड़ और दही का अमृतोपम स्वादिष्ट शर्बत बनाया और प्रोफेसर और उनके परिवार को आग्रह कर करके पिलाया। प्रोफेसर महसूस कर रहे थे परात्पर भगवान अपने भक्तों को कितना प्यार करते हैं। भगवान को ऐसे ही नहीं जगतपिता कहा जाता है। नीलेश के लिए भगवन् ने आर्शीवाद के रूप में चटाई दिया।
शरद पूर्णिमा का दिन था, प्रोफेसर अपनी पत्नी सीमा और बहिन कंचन के साथ आश्रम आए। पहले से ही वहाँ बहुत से भक्त इकट्ठा थे। भक्त लोग भगवती तपेश्वरी को पुष्प माला पहनाए हुए थे। कोई महिला भक्त बात कर रही थीं कि वह ध्यान के लिए एकदम एकांत का चुनाव करना चाहती हैं, सोचती हूँ गृहस्थी से विरत हो जाऊँ। सीमा ने उन भद्र महिला से कहा-प्रकृति ने पहले से ही सभी के हृदय में एक एकांत सिरज रखा है, फिर जंगल जाना कायरता ही होगी। गृहस्थी में रहकर आप साधना कर सकती हैं। जो भगवन् ने दैवीय कृपा आप को दी है उसके साथ रहिए और भजन पूजन कीजिए, पर गृहस्थी का कर्तव्य पहले स्थान पर। वह भद्र महिला सीमा से सहमत हुईं।
उस दिन आश्रम में रात बितायी गई। वह आनंदोत्सव था। भगवन की दैवीय आभा पूरे आश्रम पर बरस रही थी। सभी एक अनकही-अलौकिक शांति का अनुभव कर रहे थे।
दूसरे दिन भगवन् का दर्शन हुआ।
दिल्ली से आए हुए एक भक्त ने कहा: भगवन् विभिन्न स्रोतों से यह पता चलता है कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1950 में रूस में नेता जी से मिले थे।
भगवन बोले: राधाकृष्णन अच्छे दार्शनिक और श्रेष्ठ अध्यापक थे। सत्रहवीं सदी में दार्शनिक बेनेडिक्ट स्पिनोजा ने अनुभूत सत्य का प्रचार किया। इस बात पर उनके विरोधी बहुत ही आक्रामक हो उठे। उस जहरीले जानलेवा दौर का सामना करते हुए भी स्पिनोजा अपने पाए हुए सत्य का प्रचार करते रहे। स्पिनोजा महसूस कर रहा था कि सृष्टि अनिवार्य रूप से भगवान से उत्पन्न हुई है। किसी व्यक्ति को ईश्वर ने निरंकुश स्वाधीन इच्छाशक्ति नहीं दी है बल्कि पूरी व्यवस्था में हर चीज दूसरे से सम्बन्धित है। इस पर उसके विरोधी उसे जान से मारने को तैयार हो गए। वैचारिक स्वतंत्रता के मामले में भारत पश्चिमी देशों की अपेक्षाकृत कहीं अधिक सभ्य है।
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प्रोफेसर ने पूछा: भगवन् आधुनिक विज्ञान उपयोगितावाद पर अधिक बल देता हैं। पं0 जवाहर लाल नेहरू पर इसका बड़ा प्रभाव था।
भगवन् बोले: बंगाल में जब रेनेशाॅ की पहली हवा चली तब यहाँ के लोगों में आधुनिक विज्ञान के प्रति रूचि जगी। लेकिन वेन्थम मिल का उपयोगितावाद सही नहीं है। आयरलैंड के जार्ज वर्कले ने कहा: इन्द्रियाँ जैसा अनुभव करती हैं कल्पना की अपेक्षाकृत वह अधिक प्रामाणिक है। लेकिन वह भगवान ही है जो विचारों को सही क्रम प्रदान करता है। आइंस्टीन ने डार्विन के सिद्धांत की सीमायें बताईं। महान् वैज्ञानिक आइंस्टीन नास्तिक,मनावतावादी और शांतिवादी थे। इतिहास इसलिए होता है कि हम उससे सबक ले सकें और जो भूलें हुई हैं, वैसा कुछ न हो। जो इतिहास से द्वेष, घृणा और बदले की भावना लेते हैं, वे मूर्ख होते हैं। इस समय देश लालची, बहसी दादाओं नेताओं के लिए चारागाह हो गया है। किसी गाँधी, भगत सिंह, और आजाद जैसे के होते हुए भला यह दशा होने पाती।
राज्य का कानून ऐसा होना चाहिए कि ऐसे असामाजिक अत्याचारी दुष्टों को ताउम्र जेल में रखना चाहिए वही पर श्रम करें और सुधरें। लालच के चलते हर जगह असंतुलन और विनाश दिखाई पड़ रहा है। महात्मा गाँधी का सत्य अहिंसा, प्रतिरोध, शांति और प्रेम का रास्ता ही संसार का भविष्य बचा सकता है। विज्ञान को राक्षसी खोजें नहीं करनी चाहिए, जो मानवता की हानि कर सके। राक्षसों की निगाहें परमाणु बम पर है। क्या तुम्हारा विज्ञान और अंधे लालची शासक मानवता की रक्षा कर सकते हैं? संसार की प्रत्येक स्त्री, बच्चें, पुरूष को प्रेम, शांति, आजादी, समानता, समृद्धि, सुख और सुरक्षा की जरूरत होती है। इन चीजों की चिंता किसे है। कोई देश शक्ति, समृद्धि और सम्प्रभुता का आनंद अकेले नहीं उठा सकता है। सभी देश एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, नियति सभी के माथे पर एक ही हस्ताक्षर करेगी। अपने देश की कोई भी राजनीतिक पार्टी इन चीजों की चिंता नहीं कर रही है।
देवरहा बाबा के कुछ शिष्य भगवन् के दर्शन के लिए तपेश्वरी धाम आए ।वे बोले प्रभो बाबा ने आप के बारे में भाव विभोर होकर कहा -- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय.. वह अनंत स्वरूप हैं । अव्याख्येय हैं । देवरहा बाबा इस देश के कल्याण के लिए तपस्या कर रहे हैं।
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भगवन् अपने भक्तों से कह रहे हैं - ब्रम्हर्षि देवरहवा बाबा, ब्रम्हर्षि लल्लन दास ब्रम्हचारी, ब्रम्हर्षि दाता साईं ब्रहर्षि नीमकरोरी बाबा और इनके पहले हजारो संतो की तपस्या इस देश के कल्याण के लिए समर्पित रहा। किन्तु इस देश की कानून व्यवस्था बहुत खराब है। राजनेताओं को धन लूटने से फुर्सत नहीं है, वे कितने कष्टकारी नरक में पड़ेगें इसका बिना ख्याल किए जनता की गाढ़ी कमाई का धन अपनी सात पुश्त के लिए लूटने में लगे हुए हैं। आदमी के एक पल का ठिकाना नहीं होता है। संत कबीर ने कहा - पल में परलय होएगी, बहुरि करोगे कब। ऐसी व्यवस्था होना चाहिए कि जनता राजनेताओं से सही-सही जान सके कि उसके क्षेत्र के नेता को काम करने के लिए कितना पैसा मिला है, उसमें कौन-कौन से अधिकारी शामिल हैं। अधिकारी राजनेताओं को पब्लिक का धन लूटने के लिए रास्ता बताते हैं और खुद भी खाते हैं। इनका वेतन देखो और इनका साम्राज्य देखो। इस कार्य में मीडिया की मदद लेनी चाहिए। जो स्त्री अधिकारी या राजनेता हैं, उनमें अधिकांश उसी ढंग की हैं। जब मीडिया दूध का दूध, पानी का पानी कर दे, सभी का लूटा हुआ धन पता लग जाए तो सरकार को चाहिए कि वह उस क्षेत्र की जनता से ही उसे सौ जूते मरवाकर मरने तक जेल में डालकर खूब कड़ी मेहनत ले। भ्रष्टाचार कोई सरकार खत्म करना चाहे तो एक मिनट में खत्म हो सकता है। महात्मा गाँधी और नेताजी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के फैसले एक मिनट में लिया करते थे, जो हृदय का सच्चा होता है, जिसकी साँस-साँस अपने देश की माटी के लिए समर्पित होती है उसके लिए संत तुलसीदास की यह चौपाई लागू होती है - कोटि विष्नु सम पालनकर्ता। कोटि रूद्र सम सो संहरता।। और कह सकते हो -
छिन मँह धरनि अकाश कराही। पल महँ सो पातालहिं लाई।।
कछुक असंभव सो कँह नाहीं। सो भगवंत संत हिय माहीं।।
महमूदाबाद से आए हुए एक भक्त बोले - स्वामी जी आप की चरण रज लेकर त्यागी जी भी अच्छी तपस्या कर रहे हैं।
भगवन् के चेहरे पर खुशी चमक गई। बोले - हाँ वह अच्छे साधक हैं।
भगवान राम कहते हैं - मैं सेवक सचराचर सीय सहित भगवंत।।
विसवाँ से आए एक भक्त बोले - भगवन् अगर आप नेता जी हों भी, जैसा कि आप रूप-स्वरूप से लगते हैं, तो प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति को अपने इंटेलीजेंस के माध्यम से पता तो होगा। उन्हें खुद दर्शन करने के लिए आना चाहिए।
रामीपुर गोड़वा से अए एक भक्त बोले - किसको पता है कि भगवन् नेता जी हैं, किसको नहीं पता है, यह तो भगवन् ही जानते होंगे। ये तीनों लोकों के स्वामी है, इनकी इच्छा के बिना पत्ता नहीं हिल सकता है।
सीतापुर से आए एक भक्त बोले - भगवन् कोई सामान्य संत हैं भला, ये चाहें तो संसार की तस्वीर बदल सकती है।
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भगवन् बोले: राजनेता और अधिकारी जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं। जैसे सेना देश के मोर्चे पर वीर मुद्रा में एकदम तैयार रहती है, वैसे ही राजनेता को जनता की सेवा करनी चाहिए। बिना त्याग के सेवा नहीं होती है, उसके लिए लालच और दुर्गुणों को छोड़ना होगा। क्या यह वही आजादी है जिसके लिए महारानी लक्ष्मीबाई, महात्मा गाँधी, चन्द्र शेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे लोक सेवा का माधुर्य लिए हुए मातृभूमि की अनगिनत सपूत और महिलाएँ अपना जीवन अर्पित कर दिए?
जाति और धर्म की राजनीति शुद्ध सत्ता की राजनीति है। कीचड़ में डूबकर कोई दूसरे को प्रकाश नहीं दिखा सकता। जाति, धर्म, लिंग सम्प्रदाय के आँकड़ों और जनसंख्या के आधार पर राजनीति करने का जो सिद्धांत यूरोप ने दिया वह मूर्खतापूर्ण और अमानवीय है। जब तक इन चीजों से भारत मुक्ति नहीं पा लेता है तब तक न्यायप्रिय नहीं बन सकता है। आंतकवाद एक भी क्षण के लिए नहीं सहना चाहिए। उसके लिए संत तुलसीदास की यह चौपाई अमल में लाना चाहिए - निशिचरहीन करहुँ महि भुज उठाइ प्रन कीन्ह। स्वच्छ लोकतंत्र कायम रखने के लिए देश को गांधी जी और नेता जी जैसा जज्बा रखना चाहिए ।
सवाल उठता है
जब एक ऐसे महान् तपस्वी संत जिनका रूप-स्वरूप नेताजी से हू-ब-हू मिलता था और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान के अलावा, इतिहास, दर्शन, राजनीति शास्त्र आदि का सम्यक ज्ञान था, लेकिन जो न तो स्वयं सार्वजानिक रूप से यह दावा कर रहे थे कि वह नेता जी हैं, न ही उनके भक्त यह दावा कर रहे थे, फिर भी यह सत्य फैल गया था कि भगवन् नेता जी हैं। समय-समय पर उन्होंने अपने भक्तों को बताया भी कि वह नेताजी हैं लेकिन भक्तों से मौन रखने को कहा। जैसे भगवन् के भक्त भगवन् के मौन उपासक थे। ऐसे भगवन नेता जीसुभाष चन्द्र बोस थे। किंतु इस विषय में क्या हुआ? मुजेहना तपेश्वरी धाम तीर्थ में प्रमाण नहीं था तो संसार में कहीं तो प्रमाण होगा।
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बुद्धिजीवियों के बीच यह कम आशंका और अध्ययन का विषय नहीं है कि भगवन् सूर्य की तरह तेजस्वी व्यक्तित्व वाले थे। उनके पास ऐसे भक्त नित्य दर्शन के लिए आया करते थे, जिनका दृढ़ विश्वास था कि भगवन् और कोई नहीं नेताजी है, देश के कोने कोने से अनगिनत भक्त अपने प्रिय नेताजी की एक झलक पाने के लिए मुजेहना तपेश्वरी धाम आया करते थे, और कई टी0वी0 चैनल्स भगवन् की फोटो इस आशंका के साथ प्रसारित कर चुके थे कि भगवन् नेता जी हो सकते हैं
1999 में भगवन् ने कुछ ब्राह्मणों को आश्रम बुलाया। जो गौवें थीं, उन्हें दान कर दिया। 1990 के यज्ञ में वह घोड़ा दान कर चुके थे। भगवन् हमेशा चश्मा पहनते थे और घड़ी लगाते थे।
भगवन् बोले: चारागाह नहीं बचे। दूध सभी पीना चाहते हैं। जो सौभाग्यशाली और वीर लोग होते हैं वही गाय की सेवा कर सकते हैं। गाय को अपने ही खूँटे पूरा जीवन बिताने देना चाहिए।
मेरठ, कोलकाता, अहमदाबाद, फैजाबाद, सूरत, ग्वालियर, झाँसी, भोपाल, दिल्ली, बाराबंकी, लखीमपुर और लखनऊ आदि शहरों एवं गाँवों से कुछ भक्त भगवन् के दर्शन के लिए आए हुए हैं।
भगवन् कष्ट और आपदा-विपदा से सताए हुए लोगों की फरियाद सुन रहे थे और उन्हें अपना आशीर्वाद दे रहे थे।
भोपाल से आए एक भक्त ने भगवन् से कहा: भगवन् बहुत पहले से ही इस देश की कानून-व्यवस्था बहुत खराब है।
भगवन् बोले: नेतृत्व कमजोर और बेईमान लोगों के हाथ में नहीं होना चाहिए। राजनेताओं के साम्राज्य पर शासन हाथ नहीं डालता है, चोर-चोर मौसरे भाई, जितने गुंडे माफिया हैं सभी शासन के संरक्षण में हैं। नहीं तो एक दिन में ऐसे लोगों का सफाया हो सकता है। महात्मा गाँधी जैसे शक्तिशाली नेता इस धरती पर कभी-कभी आते है। दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन संसार का इतिहास बदल देने वाली घटनाएँ थीं। विभाजन के दौर में जो साम्प्रदायिक दंगे की आग भड़की उससे महात्मा गाँधी निराश और हताश हो गए। भारत छोड़ो आंदोलन तय करने के मुद्दे पर नेहरू और उनके साथियों को राजी करने के लिए महात्मा गाँधी ने जिस प्रकार अपना कठोर रूख अपनाया था, वैसा विभाजन के मुद्दे पर ब्रिटिश सरकार,जिन्ना आदि द्वारा शुरू किए गए अध्याय को महात्मा गाँधी कड़ाई के साथ बंद नहीं कर सके। यदि देश के मुखिया के पास एक महात्मा का हृदय होता और अपने स्वार्थ को वह राष्ट्रीय गौरव में घुला-मिला सकता तो
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यह हालत न होती। नेता जी केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ही खिलाफ नहीं थे बल्कि दुनिया के साम्राज्यवाद के खिलाफ थे। देश में बहुआयामीय लोकतंत्र होना चाहिए, केवल दो वर्ग हैं - अमीर और गरीब। यह राजनीति गुंडा, माफिया और असामाजिक तत्वों से छुटकरा नहीं दिला पाती है तो देश के नागरिकों को तब तक असहयोग आंदोलन जारी रखना चाहिए जब तक गुंडा, माफिया, बाहुबली, असामाजिक तत्वों को पूरे जीवन का कारावास नहीं मिल जाता है। इस प्रकार देश देशवासियों के हाथ में होगा, जैसा वे करेंगे वैसा पाएँगें। या तो शैतानों के हाथ में कुठपुतली बने रहो या ब्रिटिश साम्राज्य से लड़ते हुए जो हजारों वीर महिलाओं और पुरूषों ने अपना जीवन दाँव पर लगाकर स्वाधीनता दिलाए, उन जैसा बहादुर बनकर स्वाधीन रहो। यदि प्रत्येक व्यक्ति सदा हृदय से अभिवादन करने योग्य सेना का सम्मान करने लगे तो वह सेना जो कि लोकतंत्र से सम्मानित होती है देश की रक्षा करती है जो स्वाधीनता की रक्षा करती है, संसार की महानतम सेना बन जाए। उस सेना का हमेशा सम्मान करना चाहिए और देश को बेईमान लोगों से बचाना चाहिए। अगर तुम्हारे नेता यह कहते हैं कि मुश्किल से एक चौथाई से भी कम धन जनता के लिए विकास कार्यो में खर्च हो पाता है शेष भ्रष्टाचारी लोगों द्वारा हड़प लिया जाता है, तो जो नेता और अफसर संवैधानिक पदों पर हैं, उन पर इसका फर्क क्यों नहीं पड़ रहा है। अब तक देशवासियों द्वारा इन लोगों को प्रश्नों के घेरे में क्यों नहीं लिया गया? यह किसका दायित्व है कि जनता का पैसा जनता के लिए विकास कार्यांे में भ्रष्टाचार की शिकार कतई न होने पाए। देश की जनता ही वी0आई0पी0 है न कि अफसर और मंत्री।
ग्वालियर से आए हुए एक भक्त ने कहा: प्रभु, सरकार को उन महापुरूषों, वीरांगनाओं से कुछ भी नहीं लेना-देना जो देश की आजादी के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिए। नेता लोग कुनवों, जातियों, धर्मों की राजनीति करने में व्यस्त हैं।
भगवन् बोले: क्या ग्वालियर में रानी झाँसी का भव्य स्मृति-भवन बना हुआ है। सरकारें रोजगार पैदा करने के लिए कहती हैं, क्या ग्वालियर में महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता की याद दिलाने वाले अद्भुत स्थापत्य के स्मारक बने हुए हैं? क्या शहरों , कस्बों और गांवों में रोजगार के पर्याप्त साधन हैं ? क्या किसान खुशहाल है ? शासक मनमानी तो नहीं करते ? दारू और नोटों की गड्डी से जनता को बरगलाकर सत्ताधारी पार्टियां वोट तो नहीं खरीदती हैं ? शासक अपनी कुत्सित राजनीति के लिए जनता को आग में झोंक तो नहीं रहे हैं ? शासकों ने जनता के अभिव्यक्ति की आजादी छीन तो नहीं ली है ? मीडिया बिक तो नहीं गई है ? जनता अत्याचारी शासकों के डर से अनाचार पर मौन तो नहीं है ? क्या आजादी, उद्यम, उत्थान के संसाधन , शांति सुरक्षित है ? क्या प्रत्येक नागरिक के मूल अधिकार सुरक्षित हैं ? क्या नदियां स्वच्छ है ? क्या न्यायाधीश न्याय करते हैं या उनके फैसलों पर धन और सत्ता का गर्हन लग चुका है ? यह शासन की जिम्मेदारी होती है, जनता को सचेत रहना चाहिए । महात्मा गांधी ने सारी दुनिया को सिखाया कि जब अत्याचारी वर्ग कोई राह नहीं छोड़ता है तब परमात्मा के सहारे निडर होकर कैसे राह बनाई जाती है । गुलाम रहने वाले भगवान का भजन नहीं कर सकते । भक्त, ज्ञानी , योगी वीर होते हैं ।परमात्मा में स्थित स्त्री , पुरुष भय मुक्त होते हैं ।
ग्वालियर से आए हुए भक्त: भगवन् कुछ नहीं बना है। एक-दो स्मारक हैं, वे भी भव्य नहीं। यहाँ तक कि झाँसी में जो रानी महल है, उसके बड़े भाग पर पुरातत्व विभाग का कब्जा है। पर्यटक महल का हर कमरा देखना चाहता है, लेकिन वहाँ पुरातत्व विभाग का कब्जा देखकर वह खिन्न होता है।
भगवन बोले:रानी झाँसी के प्रति सरकार, पर्यटन विभाग और पुरातत्व विभाग का रवैया कितना दुर्भाग्यपूर्ण है। क्या पुरातत्व विभाग इतना गरीब है कि उसे महारानी लक्ष्मीबाई के महल में अपना डेरा डालना पड़ा? क्या झाँसी में कोई विश्वविद्यालय नहीं है जो पुरातत्व विभाग को पर्याप्त जगह दे दे जहाँ वे अपनी भव्य खोजों को रख सकें और विद्यार्थी उनसे परिचित होकर पुरातत्व वैज्ञानिकों की खोजों का मान बढ़ा सकें। क्या पुरातत्व विभाग के पास बहुत थोड़ा राजस्व आता है, या उसे सरकार द्वारा पर्याप्त धन नहीं मिलता है कि वह अपने लिए एक बिल्डिंग किराए पर ले सके। रानी झाँसी के नाम पर खूबसूरत और भव्य स्मारक होना चाहिए।
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झाँसी की तो बात ही अनोखी है, यहाँ तक कि ग्वालियर तक महारानी लक्ष्मीबाई के रोड-मैप पर वृक्ष, हरियाली और उस महान् वीरांगना की अनकही घटनाएँ बयान करते हुए अद्भुत स्मारकों की श्रृंखला होनी चाहिए। इससे न कि देशवासियों को केवल राष्ट्रभक्ति की ही प्रेरणा मिलेगी बल्कि स्थापत्य के क्षेत्र में दुनिया से होड़ करते हुए नया इतिहास रचने की चुनौती भी देश के भवन-वैज्ञानिकों और कारीगरों को मिलेगी। देश के विकास की यह सरकारी नीति होनी चाहिए। जब तक यह देश स्थापत्य, संस्कृति, आर्थिक, साहित्य और कला, विज्ञान-तकनीक के क्षेत्रों में निरंतर नई उपलब्धियाँ नहीं लाएगा, यह देश भौतिक सम्पदा में पश्चिमी देशों की बराबरी नहीं कर सकता है। जब स्त्रियों को शिक्षा , स्वास्थ्य , रोजगार ,हर प्रकार के शोषण से मुक्त पूर्ण आत्म सम्मान और निडरता से जीने का अवसर दे सकेंगे , तब समझो यह देश पार्वती , सीता , राधा , द्रौपदी, रानी दुर्गावती, मीराबाई, रानी चेनम्मा , महारानी लक्ष्मी बाई , मां शारदा , कस्तूरबा , सिस्टर निवेदिता , मीरा बेन, मदर टेरेसा का देश होगा। यह पहला कर्तव्य शासकों का पीछे हर स्त्री और हर पुरुष का है । केवल स्मारक बनाने से कुछ नहीं होता है , उसका मर्म चरितार्थ होना चाहिए ।
भगवन् बोले: किसी नेता को कौम विशेष की राजनीति नहीं करनी चाहिए बल्कि सारी जनता की राजनीति करनी चाहिए। सर्वशक्तिमान भगवान ने मानवजाति की केवल दो श्रेणियाँ बनाई हैं - 1. नारी 2. नर, इन दोनों को ईश्वर ने समानता प्रदान की है। उसने जाति नहीं बनाया। गाँधी किसी कौम विशेष के ही नेता नहीं थे, बल्कि दुनिया की मानवता के नेता थे। वह पूरी धरती के नेता थे, देश में विघटन हो, यह भला कौन चाहेगा। महात्मा का मुख्य लक्ष्य था देश को स्वाधीनता दिलाना। यदि महात्मा गाँधी कहे होते कि वर्णाश्रम व्यवस्था गलत है और देश को जाति व्यवस्था से छुटकारा पाना चाहिए तो स्वाधीनता आंदोलन में फाँक पड़ जाती। नया मुद्दा खड़ा हो जाता जो आंदोलन को नुकसान पहुँचाता। यदि घर में कोई बुराई है तो उस बुराई को दूर करना चाहिए न कि घर छोड़ना चाहिए। धर्म परिवर्तन के बजाए उस धर्म में हो रहे अन्याय को दूर करना चाहिए।
फैजाबाद से आए एक भक्त ने कहा: भगवन् जनता की निगाहों में बहुत बार न्यायालय की सच्चाई पर भरोसा नहीं होता है, खासकर इस मुद्दे को लेकर कि बाहुबली या अपराधी राजनेता पूरी स्वतंत्रता से राजनीति कर रहे हैं।
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भगवन् बोले: क्या इस देश की स्त्रियों और पुरूषों ने सरकार या न्यायालय को भेदभाव करने का अधिकर दिया है? पर प्रश्न यह उठता है कि क्या सरकार या न्यायालय को सत्य में विश्वास नहीं रहा जो कि परमात्मा है। जो इस धरती का ही विधाता नहीं है बल्कि ब्रम्हांड का रचयिता है। क्या न्यायालय को संविधान से कम अधिकार मिला है? यदि एक सामान्य नागरिक कोई अपराध करता है तो न्यायालय उसे सजा देता है। किसने कहा है कि बाहुबली, माफिया, राजनेता और और अधिकारियों को अपराध करने की छूट है। क्या न्यायालय को सरकार से वांछित समर्थन नहीं मिलता है? बाहुबलियों को कौन संरक्षण देता है? जघन्य अपराधियों का उन्हें संरक्षण देने वाले गाॅड फादर के साथ कड़ी सजा मिलनी चाहिए | जघन्य अपराधी केवल अपराध करते हैं, उन्हें तुरंत फाँसी पर लटकाने के लिए न्यायालय को निर्णय देना चाहिए।
यदि कोई दिन-दहाड़े अपराध करता है, तो प्रशासन न्यायालय को पर्याप्त साक्ष्य क्यों नहीं उपलब्ध करा पाता है? कौन अपराध के साक्ष्य नष्ट करने में मदद करता है? न्यायालय के कार्य में बाधा डालता है। न्यायाधीश का सम्मान करना चाहिए और न्यायाधीश को भी यह समझकर कुर्सी पर बैठना चाहिए कि उसे भगवान की तरह न्याय करना है। ऐसे कौने से लोग हैं जो सफेदपोश होकर हमेशा काला काम करते हुए सभी को ठगते हैं।जो सच्चे हिन्दू या मुस्लिम या ईसाई या किसी धर्म को मानने वाले होते हैं वे अपने धर्म से ओत प्रोत इसलिए होते हैं क्योंकि उनका धर्म दूसरों का अधिकार छीनने या झूठ और गलत होता हुआ देखते हुए भी अलग थलग खड़ा रहने की अनुमति नहीं देता है। जो दूसरों का अधिकार छीनते हैं या झूठ का साथ देते हैं, वे धार्मिक नहीं होते हैं, ईश्वर के साथ भी दगाबाजी करते हैं, कौन कहे आदमी के साथ। नेताजी चुस्त-दुरूस्त, अनुशासन पर खरा लोकतंत्र के पक्षधर थे, जिसमें कोई अपराध करने की हिम्मत नहीं कर सकता है। जिसमें किसी भी संस्था को अपने कर्तव्य के साथ ढिलाही बर्तने की इजाजत नहीं होती। उसमें एक पैसे का भी घूस नहीं चलता और न ही तनिक भी दादागीरी चल पाती। देश को किसने यह आदेश दिया है कि वह आतंकवाद सहता रहे। क्या आप की सेना यूरोपियन देशों की अपेक्षाकृत कमजोर है या देश के पास आंतकवाद का शिकार होते कष्ट पाते हुए लोगों का दर्द महसूस करने वाला संवदेनशील हृदय नहीं है। एक बार सहोगे, दो बार सहोगे तो शैतान कंधे पर बैठ जाएगा। महात्मा गाँधी की अहिंसा और शांति का प्रेमी होने का मतलब है पहले आप भगवान राम की तरह बनिए जिन्होंने अपने गुरू विश्वामित्र को यह वचन दिया कि मैं धरती को राक्षसों से मुक्त करके ही चैन लूँगा और उन्होंने अपना वचन निभाया। भ्रष्टाचार, दादागीरी, आतंकवाद या देश की सम्प्रभुता को मिलने वाली किसी चुनौती को क्षण भर भी नहीं सहना चाहिए। जो राजनेता अपनी आत्मा को पैसों के हाथ बेच दिए हैं, वे अधम हैं, नेता नहीं है। क्या एम0एल0ए0 और मंत्रियों की ऐसी कोई जवाबदेही होती है कि उनके क्षेत्र में जो विकास कार्य हो रहा है उसकी शुद्धता का और आवंटित धनराशि तथा खर्च धनराशि का टी0वी0 प्रसारण कर सके।बुद्धि, विद्या , धन , शक्ति , यश आदि परमात्मा की कृपा और अपने कर्म से मिलता है।कितना मिलता है? यह पृथ्वी समूचे व्रम्हांड में एक परमाणु भर ही ऐश्वर्य वाली है। सोचो इतना क्षुद्र महत्ता पाकर भी तमाम बार इंसान अहंकार से पागल हो जाता है, कपट पर कपट करता जाता है । उसका अनाचार इतना बढ़ जाता है कि प्रलयंकारी नाश होने लगता है। दुनिया की भलाई करते हुए जो स्त्री , पुरुष भगवान की भक्ति और ज्ञान ने स्थित रहते हैं उन्ही का जीवन धन्य है ।
(काशी वृंदावन और पुरी से कई महात्मा आए हुए हैं। वह भगवती राधा के भक्त हैं। राधा की महिमा का स्मरण करते हुए वे भावसमाधि में स्थित हैं।)
दो0 - प्रकृति सुगढ़ राधा हँसी, खिलखिल मोहनि रास।
खिले कमल गुड़हल खिले, भे गुलाब मधु साँस।।
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चौ0 - हीरक चूमि अरूण जिमि विहँसा। राधा मादन यौवन विकसा।।
पय-गंगा जिमि बदन गोराई। राधा रूप बसंत सिहाही।।
आदिशक्ति राधा कर ज्योती। रति रस डूबि प्रकृति जिमि सोती।।
दोनउॅ गाल जो डिम्पल राँचा। प्रतिबिम्बित रवि-कर जिमि काँचा।।
गाल-गढ़े जिमि हँसी सिहाही। निर्झर फूटि पवन बिखराही।।
व्योम धरनि गुंजित माँ राधा। कृष्न कृष्न भे राधा राधा।।
बूँद-भार पुरइन जस डोला। चंचल नयन अधर रस लोला।।
आदिशक्ति-छवि-किरन निखारी। प्रकृति खचित मधुमासहिं बारी।।
राधा-राधा जगत-जहाना। राधा कृष्ण भई रस-माना।।
लंबी छरहर वदन चोखाई। लपट उठत जिमि वारि छोंकाई।।
नासा तीक्ष्ण आँख बड़ियारी। हनि-हनि रतिहिं वान ज्यों मारी।।
तासे जगती छवि-छवि शोभा। व्योम-धरनि सब कर मन लोभा।।
वक्ष कमल श्रृंगन्ह जिमि नोखे। सकल प्रकृति मादन रस चोखे।।
कम्पित लोचन अधर औ काँपा। राधा-चरन कृष्न मधु चाँपा।।
कृष्न भे राधा राधा कृष्ना। जमुना जिमि गंगा गंगा जमुना।।
आदिशक्ति निज पुलक सँवारा। धरनि-व्योम अस मधु रस ढारा।।
दो0 - लोचन चखचख चंचल, चंचल हास विहान
देखहिं अपलक कृष्न सोइ, राधा-रंग-वितान।।
काशी से आए हुए एक भक्त ने पूछा - स्वामी जी भगवान कृष्ण अपनी प्रेमिका भगवती राधा से विवाह क्यों नही कर सके।
भगवन बोले: भगवती राधा की भक्ति करो। रहस्यमयी सत्य की अनुभूति समाधि दशा में होती है, लेकिन हर चीज बताने के लिए नहीं होती है। भगवान सिद्धांतो, नियमों से परेे होता है, क्योंकि सारे सत्य उसी से जन्मते हैं। आदिशक्ति राधा अलौकिक प्रेम और आनंद की अविरल स्रोत हैं। अपने अंतिम बारह वर्षो में चैतन्य महाप्रभु भगवती राधा के भाव में रहते थे और प्रियतम भगवान कृष्ण के लिए रोते रहते थे। वह भाव उनके लिए महाआनंद का भाव होता था। आदिशक्ति राधा सौन्दर्य और प्रेम की साक्षात, स्वरूप हैं, जिससे संसार की मानवता प्रेम, सौन्दर्य और आनंद की प्रेरणा ले सके। तुम्हारा वृन्दावन भगवती राधा को किस तरह याद करता है? क्या वृंदावन में पूरे शहर में सौन्दर्य दिखाई पड़ता है? क्या वृंदावन कदंब वृक्षों से घिरा हुआ
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है? फूलों, लताओं और चारागाहों से परिपूर्ण है? परमाणु बम के इस जमाने में तो राधा के भक्ति का ज्वार पूरे संसार में फैलना चाहिए क्योंकि प्रेम से ही विध्वंस रोका जा सकता है। लोगों को यह सीखना चाहिए कि जीवन प्रेम के लिए है, कलह या युद्ध के लिए नहीं है। महाभारत विश्व-युद्ध की तरह था। भगवान कृष्ण ने कौरवों के खिलाफ चक्र सुदर्शन का प्रयोग नहीं किया। यह राधा का प्रेम था जो कृष्ण के हृदय में बैठा शिक्षक था।
काशी से आए भक्त बोले: भगवन वृंदावन में अब कदंब नहीं बचे, न ही सुंदर चरागाह, न फूलों के बगीचे, न ही जंगल बचा। वहाँ केवल सघन बसे बिल्डिंग, अपार्टमेन्ट्स और मंदिर ही हैं।
भगवन बोले: ईंटों और पत्थरों के जंगल यह बताते हैं कि मनुष्य में उदार भावों और सौन्दर्य की कमी होती जा रही है। संत तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है-भगवान राम कहते हैं मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ और अपना अनुग्रह प्रदान करता हूँ, जिनका हृदय गंगा की तरह स्वच्छ है। यदि कोई मानवता की सेवा नहीं करता है, बल्कि ठगी करता है तो मैं उसे नापंसद करता हूँ कौन कहे अपनी कृपा देने के। वृंदावन की अधीश्वरी भगवती राधा हैं। भक्तों को राधा कृष्ण की स्थापना ऐसे भव्य महल में करनी चाहिए जो घास के मैंदानों, कदंब के सुंदर जंगलों और फूलों के उद्यानों से घिरा हुआ हो। इसका स्थापत्य पृथ्वी पर अनोखे ढंग का होना चाहिए। सरकार के पास पर्याप्त सौन्दर्य बोध नहीं है। यह केवल पर्यटन विभाग की ही हानि नहीं है, बल्कि हिन्दुस्तान की संस्कृति-विरासत की भी हानि है। वृंदावन कदंब वनों और उपवनों से घिरा होना चाहिए। यमुना स्वच्छ होनी चाहिए, जिसके तटबंधों पर कदंब के वन हों।
राजनेता फ्रांस, इंग्लैण्ड और अमेरिका घूमते हैं, लेकिन वे यह नहीं महसूस कर पाते हैं कि वे देश अपनी सांस्कृतिक विरासत के भव्य सुंदर स्मारक किस तरह बनाए हुए हैं। स्त्री हो या पुरुष यदि वे अपने वैराग्य और ईश्वर के प्रति अनुरक्ति की परीक्षा अपने घर में करके सन्यासी बनते हैं तब तो ठीक है, अन्यथा जिन्हे ईश्वर का साक्षात्कार नहीं हुआ रहता है ऐसे सन्यासी प्राय : उदर पूर्ति के लिए , यश के लिए , धन के लिए , शिष्य बनाने के लिए मनोवैज्ञानिक ठगी करते हैं , इससे सन्यास धर्म कलंकित होता है। वे स्वयं तो डूबते ही हैं अपने चेला को भी ले डूबते हैं । वृंदावन , हरद्वार , काशी में कितनी संख्या में निराश्रित विधवाएं रहती हैं , यह देश का कलंक है । कर्त्तव्य संपादन ही सर्वश्रेष्ठ उपासना है । सन्यास वह ले जो सन्यासी बनकर ईश्वर प्राप्ति कर सके और संसार का कल्याण कर सके । सन्यास के पात्रता की परीक्षा हर ढंग से घर में कर लेना चाहिए -- भोग विलास की इच्छा तो नहीं है ? इंद्रियों पर सहज नियंत्रण हो सकेगा या नहीं ? धन , कीर्ति की इच्छा तो नहीं है ? ईश्वर के प्रति अपार अनुरक्ति है या नहीं ? क्रोध तो नहीं है ? किसी की निंदा या दुत्कार सहा जा सकता है या नहीं ? भिक्षाटन बिना मैं भाव के हो सकता है या नहीं , सर्व त्याग संभव है या नहीं ? इसीलिए असली सन्यास को सबसे कठिन और सबसे श्रेष्ठ कहा गया है । भगवान भी असली सन्यासी की परिक्रमा करते हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में माता - पिता की वंदना पार्वती और शिव के रूप में की है , फिर जो माता - पिता की कद्र न कर सका , उन्हे अपनी सेवा से प्रसन्न न रख सका वह और क्या कर सकता है ? वह तो साक्षात पार्वती और महादेव की सेवा से वंचित रह गया । पत्नी लक्ष्मी स्वरूपा है , यदि कोई पत्नी को मित्र , भार्या , सहचरी , ऐश्वर्य रुपा लक्ष्मी के रूप में सख्य - सम्मान न दे सका , बल्कि अपनी श्रेष्ठता के दंश से पीड़ित है , वह जगत कल्याण भला कैसे कर सकता है । सच्चा आध्यात्मिक गुरु परब्रम्ह के समान होता है , यदि कोई गुरु को अपनी सेवा से प्रसन्न न कर सका तो वह ईश्वर की प्राप्ति कैसे करेगा ? लोक परलोक में इच्छित चीजें कैसे प्राप्त करेगा ? वह निस्पृह भी कैसे हो सकता है ? वह मोक्ष भी कैसे प्राप्त कर सकता है ।
भगवन् के चरणों के पास हरिद्वार से आये हुए साधु भक्ति में डूबे हुए बोले: भगवन मुझे अद्भुत दिव्य रूप दिखाई पड़ा। मैंने देखा कि भगवान् कल्कि के अवतार सुभाष चंद्र बोस हैं और गंगा आप के चरणों से निकल रही हैं।
भगवन् ने आर्शीवाद में अपना हाथ उठाया और कहा - महात्मन राधा, राधा जपो।
भगवन् का दिव्य प्रभाव ऐसा कि वहाँ जितने भक्त बैठे थे सभी भगवती राधा की अलौकिक भक्ति में डूब गए। वातावरण में सभी को राधा-राधा-राधा ध्वनि सुनाई पड़ने लगी। यह ध्वनि इस लोक की नहीं थी। भगवन् के प्रसाद से दिव्य लोक से उतरा था।
हम नहीं जान सके कि हम कहाँ बैठे हुए हैं। केवल हृदय के सितार उस दिव्य ध्वनि से झंकृत हो रहे थे: राधा-राधा-राधा।
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बहुत से भक्त कटक, हैदराबाद, बाला जी, गंगोत्री, अमरनाथ, ऋषिकेश, अयोध्या, मथुरा, बाराबंकी और लखनऊ आदि शहरों तथा गाँवों से, भगवन् के दर्शन के लिए मुजेहना आश्रम आए हुए हैं।
गंगोत्री से आए हुए एक वृद्ध साधु बोले: भगवन् गंगोत्री की लहरों की ध्वनि से उठती हुई मैंने एक दिव्य, वाणी सुनी। इसलिए मैं यहाँ आप के दर्शन के लिए आया हुआ हूँ। मेरी आँखें मुझे धोखा नहीं दे सकती हैं। अपनी युवावस्था में मैं गंगोत्री में आपका आर्शीवाद पा चुका हूँ। यद्यपि आप आकाश विद्या जानते हैं सो आप कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। संसार की मानवता इस समय कपट और लालच से संकट में हैं। भगवन् फिर आपकी लीला में देरी क्यों ?
भगवन् अपनी कुटिया में वापस गए और एक कटोरी दही लेकर बाहर आए, महंथ को दिया और उन महात्मन को देने को कहा। महंथ ने वैसा ही किया। भगवन् से प्रसाद पाकर महात्मा आनंद से अभिभूत हो उठे।
भगवन बोले: एक बार मैं हावड़ा ब्रिज से हुगली में गिर गया। वहां आदिशक्ति भगवती पार्वती प्रकट हुईं और मुझे कैलाश ले गईं। वहाँ मै तपस्वी रूप में स्थित हो गया ।
प्रकृति ने मुझे कभी जन्म या मृत्यु नहीं दिया। मैं अपनी इच्छा से जन्म लेता रहा और अपने धाम जाता रहा। मेरा पूर्व अवतार भगवान राम और कृष्ण का था। गंगोत्री के ऊपर तपोवन है, वहाँ मैं बहुत दिनों तक तपस्या में रहा। जब मैं नीचे आया तो देश भर में अनेक स्थलों पर तपस्या किया , फैजाबाद जिले के संत पलटू दास आश्रम में महायोगी स्वामी जगन्नाथ दास जी के सान्निध्य में रहा। कुछ वर्षो बाद मैं पुनः हिमालय लौट गया। महात्मन आप सच कहते हैं मैं गंगोत्री में आप से मिला हूँ। मैदानी भाग में यह चालीसवां स्थान है। मैं यहाँ त्रेता युग में यज्ञ कर चुका हूँ। यहाँ विभिन्न युगों में अनेक संत और योगी तपस्या कर चुके हैं। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा: अर्जुन, जो लोग मुझे हमेशा विश्राम में देखते हैं वे मुझे नहीं देख सके और जो मुझे हमेशा कार्य करते हुए देखते हैं, वे भी मुझे नहीं देख सके। मैं कार्य न करते हुए भी अनवरत कार्य करता रहता हूँ अन्यथा यह सृष्टि विराम ले ले। यद्यपि मेरे लिए कुछ भी कार्य शेष नहीं है, मैं अनंत आनंद में स्थित रहता हूँ फिर भी मैं सृष्टि की मर्यादा के लिए हमेशा कार्यरत रहता हूँ। मेरा कार्य ही आनंद समाधि है, मेरी आनंद समाधि ही कार्य है।
गंगोत्री से आए हुए महात्मा भगवन् के समक्ष बारम्बार वंदगी लगाते कीजिए श्री राम रमा रमनम शमनम भव ताप भयाकुल पाहि जनम छंद से भगवन् की स्तुति कर रहे थे। दूसरे भक्त महसूस कर रहे थे जैसे आकाश से दिव्य आनंद धरती पर उतर आया हो।
कटक से आए हुए एक भक्त ने पूछा: भगवन् 1998 में ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि नेताजी का नाम युद्ध अपराधियों में नहीं शुमार किया गया था, केवल कुछ जापानी और जर्मन सैनिकों के नाम युद्ध अपराधियों में हैं। लेकिन ब्रिटेन का यह स्पष्टीकरण डिप्लोमेटिक लगता है।
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भगवन बोले: जब आप के देश की डिप्लोमेसी कमजोर होगी तो दूसरे देश की डिप्लोमेसी धोखेबाज और झूठी तो होगी ही। तमाम बार इतिहास सबक नहीं देता है। बल्कि अंजाम देता है। पांडव लोग विश्वास करने के मामले में बहुत भोले थे। भगवान कृष्ण सर्वज्ञ थे, इसलिए वह पांडवों को राज बताया करते थे।
माउंटबेटेन ने बँटवारे में जो अमानवीय भूमिका निभाई उसको देखते हुए आजादी के दौर में मांउटबेटेन को कमतर आँकने का पर्याप्त प्रमाण है? क्लीमेंट एटली या बाद के उत्तराधिकारी प्रधानमंत्री विदेश राजनयिक संबंधो के मामले में ब्रिटेन की छवि पर और धब्बा क्यों लगाते।
जैसा कि विश्व कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने नेताजी को लिखा था-अब तुम मध्याह्न के सूर्य की तरह चमक रहे हो। नेता जी आजीवन सूर्य सा ही चमकते रहे। मित्र राष्ट्र उनकी छवि को धूमिल करने वाले कौन होते हैं?
भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा: यदि मैं चाहूँ तो धरती के सारे अपराधियों को क्षण भर में खत्म कर सकता हूँ, लेकिन मैं स्वयं प्रकृति के कर्म-चक्र का अनुसरण करता हूँ यही मेरी योग माया है।
जापान बहुत ही अच्छा देश है,उसकी अच्छाई की जितनी बात कही जाए कम है|
अमेरिका को युद्ध में परमाणु हथियार का प्रयोग कतई नहीं करना चाहिए था| संसार डा0 फाउस्टोसियन पैक्ट से गुजर रहा है। उसने अपनी इच्छा पूर्ति के लिए शैतान से समझौता कर लिया है। युद्ध इस बात की अनुमति नहीं देता है कि नैतिक मूल्यों को दरकिनार कर दिया जाए।
कोलकाता से आए हुए एक भक्त ने पूछा: भगवन् वाल्मीकि, व्यास और टैगोर की संगीतात्मक कविताएँ पाठक के मन को चाँदनी नहाए आकाश तक ऊँचा उठा देती हैं। लेकिन किसका काव्य श्रोताओं के हृदय में मधुर भावों की बाढ़ ला देता है।
भगवन बोले: बाल्मीकि के पहले बहुत से वैदिक कवियों ने प्रकृति के निकटतम लय में अत्यंत मर्मस्पर्शी कविताएँ रची हैं। उनके सूक्त संगीतात्मक दृष्टि से अंतः प्रेरणा से, प्राकृतिक रूप से अस्तित्व में आए हैं। उनकी कविताओं की आंतरिक बुनावट में मनुष्य के भावों और उसके सौन्दर्य तथा ऐन्द्रिक गंध के बहुतेरे रंग सहज ही भरे पड़े हैं। उनमें धरती, नदियों, जंगलों, पहाड़ों, वनस्पतियों और फूलों की खूशबू भरी हुई है। ये सूक्त संगीत का रेला पैदा करके मनुष्य की चेतना को एक ही साथ आध्यात्मिक गगन में ले जाते हैं और जीवन तथा सभ्यता के रंग-गंध से भी परिपूर्ण रखते हैं। लोगों की गलत अवधारणा ने वैदिक कविता को धार्मिक अनुष्ठान के साँचे में ढाल दिया है। वेदों में अध्यात्म , इतिहास , कर्मकांड और उस समय की सच - गलत मान्यताएं भी हैं । सार सार को गहि रहे थोथा देय उड़ाय । यूरोप में रोमांटिक रिवाइवल के बाद कला और साहित्य को व्यावसायिक उड़ान भी मिली, यही कारण है कि बावजूद उनकी गुणवत्ता कम होने से भी वे यूरोपियन मध्यवर्ग को अपनी तरफ आकर्षित कर सके और उन पर सुंदर भूमिकाएँ, प्रशंसात्मक लेख लिखे गए। भारतीय मध्य वर्ग पर प्राच्यवादियों की मानसिकता हावी रही। इसीलिए वे अपने खजाने को नहीं पहचान सके। यदि वैदिक कविता को भी व्यावसायिक रूप से उर्वर जमीन मिली होती तो संगीत की दृष्टि से वह अद्वितीय मार्मिक कलाकृति के रूप में महिमामंडित होती। तुम लोगों का बालीवुड संगीत की दुनिया में बहुत समृद्ध है, लेकिन उसमें काले धन के बाढ़ ने बुद्धिमान लोगों की अक्ल पर ताला लगा दिया है। ऐसी कम फिल्में बनती हैं जो मनुष्य के मनोरंजन के साथ-साथ उसे कला और सभ्यता की दृष्टि से और ऊँचे उठा देती हैं। ऐसी फिल्मों
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की बाढ़ है जो हिंसा, दादागीरी, शैतानी तकनीक के कूड़े से भरी हुई हैं और वे युवा पीढ़ी की मानसिकता को कुत्सित बना रही हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश की सांस्कृतिक महिमा और हिन्दी को पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित करने में बाॅलीवुड की ऐतिहासिक भूमिका है।
महर्षि बाल्मीकि और व्यास देव का काव्य संगीत को विविध रंगों से परिपूर्ण एक नया ही क्षितिज देता है जो अनिवार्य रूप से नैतिक में को से कीजिए भी समृद्धि करता है, इनके काव्य से भारत ही नहीं पूरी दुनिया सीख ले सकती है। संसार की सुंदर और पावन सभ्यता के लिए इन दोनों विभूतियों का काव्य पढ़ा-गुना जाना चाहिए। आधुनिक नीतिशास्त्र को अब भी व्यासदेव के काव्य से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। संसार में व्यास देव के श्रीमदभागवत और महाभारत जैसा कोई ग्रंथ नहीं है जो एक ही साथ संगीत अध्यात्म और नीति की दृष्टि से सभ्यता का मानक ग्रंथ कहला सके।
कालिदास का काव्य अलग किस्म का है। उनसे भारतीय साहित्य में नया मोड़ आता है। कालिदास ने मनुष्य की ऐन्द्रिक इच्छाओं और माधुर्य को प्रकृति की खूबसूरती में घुला-मिलाकर अद्भुत काव्य का सृजन किया है।
रवीन्द्र नाथ टैगोर की गीतांजलि वैदिक काव्य से प्रेरणा लेती है। टैगोर मानव आत्मा और प्रकृति के अमर गीति गाकर उस समय ब्रिटिश साम्राज्यवाद की निरी भौतिक सभ्यता को चुनौती देते हैं। संगीत से लवरेज लय कविता का ऐसा गुण होता है, जो हृदय को आसानी से अपनी लय में ढाल लेता है। वह बहुरंगी भावों से कविता को रंग देते हैं जो विचार-मणियों को आत्मसात करने में सहायक होती हैं।
अमरनाथ से आए स्वामी तुरीयानंद ने पूछा: भगवन् इंद्र कौन हैं। जिन्हें ऋषि पूजा में शराब (सोम) और बलि में माँस अर्पित करते हैं।
भगवन मुस्कुराए और बोले: यह विद्वानों का अल्पज्ञान है कि सुंदर मधुर रूपक जो कवि ने अपनी कविता में गूँथे हैं, पकड़ से छूट जाते हैं। सोम का अर्थ शराब नहीं है। सोम उस समय पाई जाने वाली एक लता है जो अमृत जैसे पुष्टिकारक और दैवीय संजीवनी जैसे रस से भरी होती है, उसे निचोड़कर जो संजीवनी रस उपलब्ध होता है उसे ही वे इंद्र को अर्पित करते हैं और ऋषि लोग स्वयं प्रसाद रूप में सेवन करते हैं। श्री सूक्त में ऋषि लोग भगवती लक्ष्मी को भी सोम रस अर्पित करते हैं तो क्या आर्य लोग अपनी पूज्य देवी लक्ष्मी को भी शराब पिलाते हैं? बलि आदिम सभ्यता में आम बात रही। शिकार प्रथा से उठाया गया रूपक है, जो अंधविश्वास के चलते कालातंर में पूजा में हिंसा (बलि) के रूप में प्रचलित हो गया। भगवान बुद्ध ने इस कुप्रथा को बहुत हद तक दूर किया। इंद्र भगवान का वज्र चक्रसुदर्शन जैसा है। इंद्र भगवान के ही रूप हैं। वैदिक इंद्र भगवान हैं जब कि पुराणों में इंद्र भ्रष्ट अर्थवाला हो गया। इंद्र को एक सामान्य स्वार्थी देवताओं का राजा माना जाने लगा।
यद्यपि महर्षि अरविंद योगी थे किन्तु वह ऋग्वेद के मधु आवरण रूपकों को उद्घाटित नहीं कर सके हैं। वह केवल परा-चेतना के ही धरातल से व्याख्या करते हैं, जबकि ऋग्वेद अध्यात्म के अलावा एक जीती-जागती आर्य सभ्यता के इतिहास को भी समेटे हुए है। योगी अरविन्द अपनी पुस्तक ’वेद रहस्य’ में रहस्यात्मक कविता देखते हैं।
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उत्तर वैदिक समाज पितृसत्तात्मक समाज है, जिसमें स्त्रियों को पर्याप्त स्वतंत्रता नहीं है। इसलिए यदि कोई पुराणों और स्मृतियों को देवों से बरसे हुए सर्वश्रेष्ठ देखेगा तो उसे निराशा ही हाथ लगेगी। पुराणों में श्रीमदभागवत पुराण अमृत-सागर सा है।
काशी से आए हुए एक भक्त ने पूछा: भगवन पुरूष सूक्त में ऋषि ने परमात्मा के चार पादो को चार वर्ण के रूप में बताया है, जो कालांतर में जाति व्यवस्था का विसंगतिपूर्ण रूप ले लेता है।
भगवन बोले: जो विद्वान पुरूष सूक्त को वेद पर लगे लांक्षन के रूप में लेते हैं वे निष्पक्ष नहीं हैं। यद्यपि वेद आर्य सभ्यता के आरंभिक विकास के दौर में रचे गये पवित्र संुदर भावों की मनोहर दिव्य झाकियाँ हैं। किन्तु उसके धब्बे पूर्ण अनर्थ युक्त भाग की अनदेखी नहीं की जा सकती है। पुरूष सूक्त के चार पदों की रचना पुरोहितों ने किया, जो समाज पर अपनी मनचाही व्यवस्था लादना चाहते थे। ऋषि के द्वारा नहीं लिखा गया है क्योंकि वह तो बुद्धत्व प्राप्त होता है, वह सचराचर में समभाव रखता है।
कहीं कीचड़ है तो गधे की तरह उसे पीठ पर लिए नहीं फिरना चाहिए। भटके हुए व्यक्ति की ही यह प्रवृत्ति होती है कि वह किसी ग्रंथ के गलत भाग को बार-बार उद्धृत करता है तो अज्ञान फैलता है। बुद्धिमान स्त्रियों और पुरूषों को परमात्मा के उन चार चरणों के बारे में जानना चाहिए जिनका उल्लेख ऋषि ने मुंडकोपनिषद में किया है। परमात्मा का प्रथम चरण वैश्वानर कहलाता है जो ब्रम्हांड के स्थूल रूप में विराजमान रहता है। वह स्त्री, पुरूष, प्रत्येक प्राणी, कण-कण और समूचे ब्रम्हांड में व्याप्त होता है। यह तेजस शरीर या सूक्ष्म शरीर ही पुनर्जन्म करवाता है। इसीलिए भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा: मैं सम्पूर्ण ब्रम्हांड को अपनी दैवीय कला के महज एक अंश से धारण करता हूँ। परमात्मा का दूसरा चरण तेज है। तेज के रूप में ईश्वर ज्ञान, संकल्प, इच्छा, ऊर्जा और सूक्ष्म शरीर के रूप में प्राणियों में और ब्रम्हांड में व्याप्त होता है। तीसरा चरण - मनुष्य की गहरी नींद के समान होता है। ईश्वर के तीसरे पाद को हिरण्यगर्भ कहा जाता है। इस अवस्था में मनुष्य को स्वप्न नहीं आते हैं, न वह इच्छा करता है, न कुछ अनुभव करता है-गहरी नींद जैसी दशा होती है। वह प्रकृति या ग्रहों-उपग्रहों में पराचेतना या वैज्ञानिक कारण के रूप में मौजूद होता है। इसे प्रज्ञा की अवस्था कहते हैं या ईश्वर का सर्वज्ञ रूप। यह रूप सृष्टि या लय का कारण होता है। चौथा चरण निर्गुण, निराकार, निर्विशेष सच्चिदानंद परब्रम्ह होता है।
तर्कों का अंत नहीं होता है, क्योंकि दूसरा अपने तर्कों कुतर्कों की अनंत श्रृंखला को सामने रख सकता है।
भक्त ने पूछा: मनुस्मृति में ब्राह्णवादी व्यवस्था इतनी अधिक थोपी गई है कि राजाओं ने वैदिक धर्म में आस्था के नाम पर मनुस्मृति को राज्य ने कानून के रूप में स्वीकृति दे दी, हिन्दू धर्म के पक्ष में क्या यह ठीक हुआ भगवन्?
भगवन् ने कहा: पहला प्रश्न यह उठता है कि क्या यह मानव जाति के पक्ष में है। जो मानवजाति के लिए अपमानजनक या कष्टदायी (शोषक) है, वह धर्म के लिए उचित कैसे हो सकता है? धर्म मनुष्य को रूलाने में, कष्ट देने में, उसकी आजादी अपहृत करने में नहीं होता है, मनुष्य की मर्यादित प्रसन्नता में होता है। धर्म भौतिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य, समृद्धि तथा धर्मपूर्वक उत्थान में निहित होता है। मनु स्मृति में शूद्रों और स्त्रियों के लिए संकीर्णता भरा ही नहीं बल्कि अमानवीय व्यवस्था की हिमाकत की गई है। स्त्रियों को कुछ स्वतंत्रता इसमें दी गई है। पर वह असली आजादी से कोसों दूर है। जब भगवान ने जाति नहीं बनाई तो मनुष्य कौन होता है जाति बनाने वाला? लिंग, समुदाय, धर्म के आधार पर समाज को विघटित करना अधर्म है।लेकिन मनुस्मृति में बहुत सी बाते अच्छी हैं। कुछ ख़राब बातों के नाते बहुत सी अच्छी बातों को ठुकराना मूर्खता है। थोड़े समय के लिए ही मनुस्मृति की वैधता रही, वह भी पूरे हिन्दू समाज में नहीं। यह अंग्रेज इतिहासकारों का दिमागी फितूर है। एक मनु नहीं हुए हैं। बहुत से तपस्वी मनु हुए हैं। अधूरा ज्ञान, वह भी नकारात्मक-मनुवाद का रट्टा लगाना कहाँ की बुद्धिमानी है।
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अपवित्र (निषिद्ध) कर्मों जैसे- झूठ बोलना, धोखा देना, लूटपाट करना, चोरी करना, घूस लेना, हिंसा करना, किसी को सताना या विभिन्न ऐसे कार्यों से किसी को क्षति पहुँचाने के लिए मना करता है। क्योंकि ये अपवित्र कर्म गलत परिणाम देते हैं, जिससे व्यक्ति को असहनीय पीड़ा या नर्क भोगना पड़ता है, चाहे वह इस संसार में भोगना पड़े या संसार से परे के लोकों में भोगना पड़े। यह धर्म सलाह देता है कि पत्नी के साथ अच्छे कर्म करते हुए, पूरे परिवार और समाज का, देश का, संसार और प्रकृति का कल्याण करते हुए सुंदर जीवन जिया जाए। कल्याणकारी कार्य सुंदर परिणाम पैदा करते हैं, जिनसे मनुष्य को अनगिनत प्रकार के सुख उपलब्ध होते हैं। जहाँ हिन्दू तीर्थ स्थित हैं, वहाँ प्रकृति की बेहिसाब खूबसूरती भी है। अर्थात हिन्दू धर्म में धर्म और गृहस्थी के बीच संतुलित संबंध है। केवल सन्यासी के अंदर काम विकार नहीं होना चाहिए। दम्पति धर्म का आचरण करते हुए वैवाहिक जीवन जीते हैं, यह हिन्दू धर्म की सृष्टि धर्मी खूबसूरती है। भगवान की सुंदरता अनगिनत रूपों में है।
जीवन को सुख, माधुर्य और सुंदरता से जीते हुए मनुष्य को सदा अच्छे कर्मों में लगे रहना चाहिए, जो अंततः ज्ञान, भक्ति की ओर ले जाते हुए मोक्ष तक पहुँचाता है। उपनिषदों में, गीता और भागवत में कर्म चक्र, सृष्टिचक्र, जन्म चक्र, सगुण और निर्गुण परमात्मा के बारे में भली भाँति समझाया गया है।
एक महात्मा चित्रकूट से आए हुए हैं, उन्होंने पूछाः भगवन् जैसा कि आपने कहा हिन्दू धर्म आनंद का खजाना है, आध्यात्मिक दृष्टि से वह संसार से परे परमात्मा के धाम तक ले जाता है और समग्र दृष्टि से कण-कण में ईश्वर की भावना कराते हुए धर्ममय ज्ञान और मुक्ति से सम्पन्न जीवन जीने को प्रेरित करता है। क्या उत्साही संतो की इस सिंह जैसे धर्म का प्रचार-प्रसार निरंतर करना चाहिए।
भगवन बोले: प्रचार का अर्थ पोथी-ज्ञान या भव्यता के साथ कथावाचन करके प्रचार करना नहीं होता है। यह तो सूर्य उगने और अस्त होने जैसा है । लेकिन कथावाचको की सुंदर भूमिका को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है,वे भक्त का अमृत बांटते हैं जिनसे लोग अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित होते हैं। हिन्दू धर्म सृष्टि की तरह ही सनातन है। जैसे नदी की सफाई की जरूरत पड़ती रहती है, वैसे हिंदू धर्म की भी समय-समय पर सफाई की जरूरत रहती है। लेकिन जो परमात्मा का साक्षात्कार कर चुके हैं और सृष्टि-बोध को प्राप्त हो चुके हैं कि आदिशक्ति कितनी नजाकत के साथ मोहक प्रकृति की रचना करती हैं वही अद्वितीय तत्व बोध वाले हिन्दू धर्म की सामाजिक बुराईयों को दूर करते हुए उसमें नया आयाम जोड़ सकते हैं। इस धर्म में व्यक्तिगत आजादी को इतना महत्व दिया जाता है कि धर्म केवल सलाह देने की भूमिका निभाता है या श्रेष्ठ और सुखी, शांत जीवन महज हिन्दू धर्म की विरासत है। इसे पाने के लिए दूसरों को बिना इच्छा के हिंदू बनने की जरूरत नहीं। बिना हिंदू बने लोग श्रेष्ठ नैतिक उत्कर्षपूर्ण भौतिक और अध्यात्मिक जीवन जी सकते हैं। यह स्त्री या पुरूष की अबाध स्वतंत्रता है कि वह किस धर्म को माने। जो धर्म में गड्डमड्ड करके मानव जाति को छुईमुई बनाना चाहते हैं, वे ढोंगी हैं। हिंदू धर्म, धर्म के ऐसे तथाकथित ठेकेदारों की निंदा करता है। कथावाचकों की कथा प्रायः मनुष्य का रूपांतरण नहीं करती है, यह चेतना को एक चोटी से दूसरी चोटी पर कुछ समय के लिए सैर करा देती है, क्योंकि कथावाचक केवल धर्म ग्रंथों तक ही सीमित रहते हैं, जबकि उन धर्म ग्रंथों में अनुभूति को सबसे अहम दर्जा दिया गया है। लेकिन इसमें दो राय नहीं कि कथावाचक धर्म की महिमा, भगवान की महिमा का अनवरत गायन करते रहते हैं, इसलिए वे प्रणम्य हैं। यह मनुष्य का काम है कि वह कथा तक ही न सीमित रहे, ऋषि विश्वामित्र ने ऋषि वशिष्ठ से भी भिन्न किया, कहा, ऋषियो की परम्परा में भिन्न-भिन्न मत हिन्दू धर्म में मणियों की तरह चमकते हैं। इसलिए एक कथन को हिन्दू धर्म का सनातन सार घोषित करने से
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पहले यह जान लेना चाहिए कि वाकई क्या ऐसा है। भिन्नता हिन्दू धर्म की शोभा है, वे विचार रूपी नदियों के भिन्न-भिन्न रास्ते हैं। हिंदू धर्म बालू का साँचा नहीं है, बल्कि उस आकाश की तरह है जो हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियों का आलिंगन करती हुई गंगा की सहस्र-सहस्र धाराओं में प्रकृति की हरियाली सौन्दर्य-माधुर्य को समेटे हुए मानव सभ्यता को सींचती है। यदि कोई राम चरित मानस या भागवत के किसी कथन को झूठा बताता है तो उससे धर्म की महिमा नहीं घटती है न ही उस व्यक्ति की निंदा होनी चाहिए। विचार का जवाब विचार है। विचार हिंसक न हों। हिन्दू धर्म की लचकपूर्ण हरियाली पाठकों की आलोचना सदा आमंत्रित करता रहा है। कथावाचकों को संत कबीरदास, गुरूनानक, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राजाराम मोहन राय, केशवचंद्र सेन, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी आदि को भी पढ़ना चाहिए। सुधारकों को हिन्दू धर्म को अधिक से अधिक प्रगतिशील बनाना चाहिए। इसमें एक पंथ की सुगंध नहीं आनी चाहिए। जब भगवान सर्वव्यापी है तो उससे छिपा ही क्या है और उससे अलहदा रास्ता अपनाकर क्या होगा।
हिन्दू धर्म केवल उन चीजों के लिए मनाही करता है जो मानव सभ्यता के लिए हानिकारक हैं। यह धर्म सदाव्रत दान का भंडारा है जहाँ पाना ही पाना है, खोना कुछ नहीं है। यह मधुर संगीत से भरे हुए मधुमास के समान है, जिसके अलौकिक संगीत के प्रति आप कान कतई नहीं बदं कर पाएँगे, आपके हृदय को मोहता ही मोहता है।
अयोध्या से आए हुए एक भक्त बोले: क्यों एक वेदांती यह दावा करता है कि वेदांत वेद या पुराणों से श्रेष्ठ है। गीता भी वेदांतिक परम्परा में शामिल कर लिया गया है।
भगवन बोले: निस्संदेह वेदांती को वेद या पुराण की हमेशा नुक्ताचीनी नहीं करना चाहिए। यह अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला कोरा गप होगा।
जो हमेशा वेदांत को सर्वोपरि बताता है और अन्य धर्म ग्रंथों को हीन बताता है, वह नशे में धुत वेदांत प्रचारक है, उसे वेदांत का यथार्थ ज्ञान नहीं है। वेदांत किसी की निंदा नहीं करता है। कोई हवा को बुलाने नहीं जाता है, लेकिन वह फूलों की सुगंध लिए सर्वत्र बहती है। सौन्दर्य का अजनबी व्याकरण नहीं होता है, लेकिन वह किसी को भी अनछुआ नहीं छोड़ता है, सभी के हृदय को उद्वेलित करता है। ठीक वही चीज वेदांत के साथ भी है, वेदांत के अनंत गौरव और आनंद का गीत गाना चाहिए। लेकिन उसको ही श्रेष्ठ और अन्य को ओछा नहीं बताना चाहिए। ऐसा यथार्थ में नहीं है।
ज्ञान की विभिन्न धाराएँ मिलकर वेदांत का निर्माण करती हैं जो वेद, रामायण, भगवत, गीता, रामचरित मानस आदि ग्रंथो को श्रेष्ठ बनाती है। वेद एक वृक्ष है, जिसमें अमृत जैसे सुगंध वाले फूल लगे हुए हैं जो धरती और आकाश के हर स्थान को आत्मा को खिला देने वाले आनंद से परिपूर्ण बना रहे हैं। बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिक्ख, ईसाई, इस्लाम आदि धर्मों की मधुर और पवित्र आस्था सत्य की महिमा का संवर्द्धन ही करती है। जो हिन्दू धर्म को मोहक बनाते हैं, वे श्रेष्ठ हैं। धर्म ऊसर में पल्लवित नहीं होता है बल्कि उसके लिए उर्वर जमीन चाहिए जो दूसरे असंख्य धर्मों की जन्मभूमि होती है। यदि कोई यह कहेगा कि हिन्दू धर्म सबसे ऊँचा है, तो वह कटे हुए तारे के समान हो जाएगा। अपने बौद्ध, जैन, सिक्ख, ईसाई, मुस्लिम, यहूदी आदि भाई जो तुम्हारे हृदय के अविभाज्य हिस्से हैं, जो तुम्हारे मधुरतम मित्र हैं, उन्हें हिन्दू धर्म के गौरवशाली बगीचा, कुंज, लता मंडप, सागर-तट के सौन्दर्य का गायन करने दो, जिससे वे भी हिन्दू धर्म के अमृत के भागीदार बन सकें। अब तक मानव सभ्यता ने जो सबसे
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ऊँचा दर्शन पहचाना है वह वेदांत का दिया हुआ सूत्र है-सृष्टि में सब कुछ ब्रम्ह ही हैं-सर्वं खल्विदं ब्रम्ह। भगवान ने ही अपने को ब्रम्हांड के रूप में परिणत किया है।
जो राष्ट्राध्यक्ष शांति और आनंद के दुश्मन होते हैं वे अंतर्राष्ट्रीय संबंधो के दुश्मन होते हैं, उनके अहंकार और स्वार्थ से युद्धों की श्रृंखला पैदा होती है। युद्ध दरवाजा खटखटाता रहेगा। जो इस देश की धरती को केवल हिन्दू धर्म के रंगों में रँगा दिखना चाहते हैं वे हिन्दू धर्म के लिए अजनबी हैं। हिन्दू धर्म हवाई गपबाजी और किसी भी प्रकार के अंहकार के कीचड़ में सनने में विश्वास नहीं रखता है। यह गंगा सा पावन और हिमालय सा ऊँचा है। यह धर्म हजारों नस्लों, उनकी आस्थाओं का स्वागत करने वाला अक्षुण सागर सा धर्म है। यह धर्म जाति, पितृसत्तात्मक व्यवस्था और अंधविश्वासी परंपराओं के धुर खिलाफ है, क्योंकि इनसे मानव सभ्यता का विकास रूकता है।
एक तीर्थयात्री जो कैंची धाम से भगवन् के दर्शन के लिए आया हुआ था, ने भगवन् से पूछा: स्वामी जी नीम करोरी बाबा कहा करते थे -- भगवान राम का कल्कि रूप में अवतार हो चुका है, वह इस समय तापस वेश में अनाम सन्यासी रूप में विचरण कर रहे हैं । भगवन आज मैं धन्य हुआ ।
भगवन बोले:संत नीम करोरी जी महान योगी थे । देश में बहुत से हनुमान मंदिर स्थापित करके उन्हे देश को परमात्मा ( सत्य ) के प्रति समर्पित ज्ञान और भक्ति , शक्ति , तेजस्विता , त्वरा , अक्षय और पावन ऊर्जा , मानव जाति को संकट से उद्धार करने का संदेश दिया । हनुमान जी इन्ही अपरा परा विभूतियों के साकार स्वरूप हैं । निष्ठा अंधी नहीं होनी चाहिए । हनुमान जी की निष्ठा भगवान राम और आदिशक्ति सीता के प्रति बराबर थी । हनुमान जी जनता को अपने कर्मों से संदेश देते हैं कि मनुष्य को अपनी शक्ति सामर्थ्य का प्रयोग हमेशा सत्य और मानव जाति के कल्याण के पक्ष में करना चाहिए । सही और गलत में भेद करने आना चाहिए । यह अनपढ़ भी जानता है कि मनुष्य से घृणा करना या करवाना , वैर फैलाना , हिंसा करना या करवाना या जिसका कर्तव्य और अधिकार है हिंसा रोकना , उसके द्वारा अपने कर्तव्य का पालन न किया जाना अपराध है। जो प्रकृति और मानव जाति के सुख शांति , उत्थान का रक्षक न होकर भक्षक है, वह अपराधी है और अपराधी लोक - परलोक में , जगत और ईश्वर द्वारा दंड पाता है । उसके कुकर्मों का परिणाम ब्रह्मास्त्र की तरह उसका पीछा करता है ।
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भाग में आया तो कुछ दिन अयोध्या और भरतकुण्ड मे रहा। संत पलटू साहब के आश्रम पहुँचा वहाँ के महंथ सर्वज्ञ योगी स्वामी जगन्नाथ दास थे।
जब मेरे गुरू स्वामी जगन्नाथ दास निर्वाण ले लिए मैंने वह स्थान छोड़ दिया, पुनः हिमालय गया, फिर नैमिष आया।
उस भक्त से भगवन् ने कहा जहाँ से तुम आ रहे हो वह परम सिद्ध संत नीम करोरी बाबा का पवित्र धाम है। तुम कहाँ के रहने वाले हो।
वह भक्त बोले: भगवन् मैं ग्वालियर का रहने वाला हूँ। वहाँ मैंने आपके बारे में सुना। मुझे महसूस हो रहा है कि भगवान् राम मेरे सामने हैं। आपके दर्शन से मेरी आध्यात्मिक भूख शांत हो गई। आप की कद-काठी नेताजी से मिलती है। कृपा करके मुझे कुछ और बताएँ।
भगवन् ने कहा: जब तुम तृप्त हो गये हो तो अधिक के लिए क्यों कहते हो? स्वामी विवेकानंद को पढ़ो और तपस्या करो।
1999। प्रोफेसर भगवन् के दर्शन के लिए गए। मनुष्य को कहीं न कहीं पहुँचना होता है लेकिन रास्ते को कहाँ पहुँचना होता है। प्रकृति ने धरती पर गुलाब की पखुड़ियों के तह पर तह बिछा रखा है। वह अधीरता के साथ इंतजार कर रही है कि प्रभु के उद्धारक चरण कहाँ-कहाँ हैं। जब चाँद की किरणें पड़ती हैं आश्रम के ऊपर जैसे चाँदनी का वितान तना हुआ हो। अँधेरा अँधेरे को पहचान नहीं पाता है, अपने पर हँसता है। भगवन् की कुटिया में एक लालटेन टिमटिमा रही है। सुदूर प्रांत से जैसे दर्द भरे संगीत का रेला चला आ रहा हो। निर्जनता का कोई गीत जैसे हवा पर ढुलक रहा हो और हृदय के तारों को झंकृत कर रहा हो - हे राम आप के अतिरिक्त गरीब झोपड़ियों की रक्षा करने वाला कौन है? जब तुम धरती पर आए नियति ने तुम्हारे भाग्य में दुख के धागे बुने। तुम राजा थे लेकिन तुम्हे वनवास मिला।
जैसा कि भगवन् की चर्या में शुमार था, उस समय भगवन बी0बी0सी0 समाचार सुन रहे थे।
जब सुबह हुई, प्रोफेसर भगवन् के दर्शन के लिए गए, बंदगी लगाई और पूछा: भगवन् यह सुना जाता है कि मित्र राष्ट्रों ने सन् 2000 तक ही नेता जी को युद्ध अपराधी करार दिया है। अब आप अपने पूर्व रूप नेता जी के रूप में क्यों नहीं प्रकट होते है।
भगवन अपनी कुटिया में लौट गए और टाइम्स आॅफ इंडिया अखबार लेकर लौटे। भगवन् ने अखबार में प्रकाशित एक कालम पर उँगुली रखी। उसमें यह समाचार छपा था कि 2021-22 तक यदि नेता जी को कहीं भी पाया जाता है तो उन्हें युद्ध अपराधी की भाँति समझा जाएगा। यद्यपि आश्रम में कोई हाॅकर नहीं था, किन्तु भगवन् को जो भी जरूरत होती कोई न कोई भक्त उपलब्ध करा देता। या अपनी विभूति से प्रकट कर लेते । प्रोफेसर चकित थे कि किस प्रकार संसार की राजनीति मरघटी नियति की तरफ जा रही है। प्रोफेसर 2022 का औचित्य नहीं समझ पा रहे थे। यदि कोई योगी एक सौ पच्चीस वर्ष तक जी सकता है तो एक सौ पचास वर्ष तक क्यों नहीं जी सकता। अचानक उन्हें याद आया वर्ष 1990 में जब उन्होंने भगवन् से पूछा था कि प्रभु विश्व मे भ्रष्ट राजनीति ही चलती रहेगी कि प्रकृति कुछ सबक सिखाएगी। भगवन् ने उस समय कहा था 2021-22 तक चीजें कमोवेश ऐसे ही चलेंगी, फिर प्रकृति महापरिवर्तन चाहेगी।
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वह सर्वज्ञ थे, इसलिए सब कुछ जानते थे।
जब प्रोफेसर के मन में यह विचार आया, भगवन् मुस्कराए और आशीर्वाद में अपना हाथ उठाए। अब प्रोफेसर पहेली से बाहर आ चुके थे। उन्हें सच्चाई का अहसास हो चुका था। कब धागे बुने जाते हैं, कब उधेड़े जाते हैं, केवल भगवन ही जान सकते हैं।
भगवन् बोले: भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा, देखो हर क्षण बिना रूके मैं असंख्य ग्रहों-उपग्रहों का ग्रास करता हूँ और असंख्य ग्रहों-उपग्रहों का निर्माण करता हूँ। अनवरत रूप से मैं असंख्य प्राणियों का लय करता हूँ और असंख्य प्राणियों को जन्म देता हूँ। यही मेरा यज्ञ कर्म है। इसीलिए संत मुझे यज्ञ-पुरूष, परात्पर ब्रम्ह के रूप में जानते हैं। ज्ञानी लोग जो इस मर्म को जानते हैं, हताश नहीं होते हैं।
प्रोफेसर भगवन् के इस आशीर्वाद से शांति की अनुभूति किए और वहीं जाकर बैठ गए जहाँ बहुत से भक्त बैठे हुए भगवन् की प्रतीक्षा कर रहे थे। भगवन् के आने पर सभी भक्तों ने वंदगी लगाई, हरि हरि हरि, हर हर शिव शिव, राम, राम उच्चारण करते हुए भक्तगण भगवन् की अभ्यर्थना किए। कुछ महात्मा काशी, अयोध्या, कन्याकुमारी, रामेश्वरम से आए हुए हैं। भगवन् अपनी करूणा और कृपा की बरसात करते हुए आर्शीवाद में अपना हाथ उठाए और महंथ राम नरेश सिंह को संकेत किया कि वह इन महात्माओं के लिए कुष की चटाई ले आएँ। महंथ ने वैसा ही किया। महात्मागण चटाई पर विराजमान हो गए। भगवन् की तरफ देखते हुए रामेश्वरम से आए महात्मा आनंद से अभिभूत होकर गहरी समाधि में चले गए। बहुत से भक्तों ने भगवन् को अपना दुखड़ा सुनाया। कौन ऐसे काले भाग्य वाले धागों से दुख से विंधा भाग्य बुनता है कि यहाँ तक कि भगवन् जो करूणा और शक्ति के अवतार हैं अपनी सजल आँखों को नहीं छुपा पाते हैं। जो नहीं कहना जानते ही नहीं। भगवन भक्तों पर अपने अमोघ अनुग्रह का वरदान बरसा रहे हैं। गुलाब, रातरानी, लिली, बेला, कनेर खूब खिले हैं। इन फूलों की सुगंध भरे हुए हवा झिरक-झिरक कर बह रही है।
काशी से आए हुए साधु ने पूछा: प्रभु। वेद आप से उत्पन्न हुए हैं। जो कुछ वेद में हैं वह स्वयंसिद्ध है, संतो की लंबी परम्परा ने इसे सहेज कर रखा है। हे भगवान् विष्णु ! मुझे प्रबुद्ध कर कीजिए
भगवन् बोले: यदि अच्छी तरह गाया जाए तो वेद मधुर संगीत के उड़ान का खजाना है जो मानवीय चेतना को मानवता के उच्च स्तर तक ले जाता है। वेदों में भौतिकवाद और अध्यात्मवाद के बीच खाँचे नहीं बनाए गए हैं। दोनों क्षेत्रों में पूर्णता जरूरी है। ब्रम्ह के अतिरिक्त कोई ज्ञान स्वयं सिद्ध नहीं है। किसी ग्रंथ में यदि कुछ ऐसा है जो शाश्वत शीलोँ के खिलाफ है तो वह अंश अनुकरणीय नहीं है , शाश्वत शील हैं -- सत्य , स्वतंत्रता ,सौंदर्य , प्रेम, करुणा ,परोपकार ,दान , विद्या ,प्रकृति - सह अस्तित्व , विश्व मैत्री , अहिंसा , वीरता , अत्याचार अनाचार से मानव जाति की रक्षा , स्त्री - पुरुष का भेदभाव मुक्त स्वच्छ , सृजनात्मक आचरण ,उद्यमिता , चर - अचर का पालन और उत्थान , परमात्मा की भक्ति करते हुए मोक्ष प्राप्ति ।
समाधि से जागने पर रामेश्वरम से आए हुए महात्मा बोले-हे घट-घट वासी राम! आप की कृपा से मैंने अपनी समाधि में आपके पूर्व अवतार भगवान राम का रूप देखा। क्षणभर में ही आप की महिमा से सम्पूर्ण पराकाश आनंद में भीग गया था, कमलनयन राम!
महात्मा पर अत्यन्त प्रसन्न भगवन् बोले: तुम्हारे जैसे महात्मा का प्यार मुझे विश्राम देता है। हे महात्मन् भक्ति सागरीय अमृत सा है। धरती के असंख्य लोगों में राम नाम का अमृत बाँटो।
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फैजाबाद से आए हुए महात्मा अचरज में अपनी आँखे फैलाकर पूछे: स्वामीजी, फैजाबाद के राम भवन में जो भगवन् जी रह रहे थे वह कौन थे।
भगवन् मुस्कुराकर बोले: भगवन् जी।
महात्मा इस पहेली को समझ नहीं सके। उन्होंने पुनः प्रार्थना किया - राम कथा सुंदर करतारी। संशय विहग उड़ावनहारी। संत तुलसीदास ने मानस में लिखा है। ब्रम्हांड के सृष्टि चक्र के स्रोत और मुक्ति के धाम हे कृपानिधान विष्णु! कृपा करके मुझे बताएँ क्या संत तुलसीदास ने गलत कहा है। मैं संशय में हूँ।
भगवन् बोले: तुलसीदास महात्माओं के महात्मा थे, जैसे चन्द्रमा तारों के बीच चमकता है। अपना संदेह दूर कीजिए महात्मन्। जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो भक्तों को अपनी विभूति दिखाने के लिए अपनी भक्ति का अमृत बांटने के लिए , जितने भक्त उतने शरीर धारण करके सभी से एक साथ मिले । भगवान् की लीला देह और दैवीय कर्म अचिंत्य है , दिव्य दृष्टि संपन्न वही योगी या संत भी उन्हे पूर्ण रूप से नहीं समझ पाते हैं , क्योंकि वह अनंत हैं । सत्य क्या है, अपनी बुद्धि भर ही लोग जानते हैं -- देखन जानन गुनन अनंता। होहु अनंत कहहिं श्री कंता ।।
ख् अत्यंत आहलादित महात्मा की आँखें भर आईं। आनंद के आँसू बहने लगे। वह इतना बोल सके-हे राम धन्य हो! हे राम धन्य हो!
वर्ष 2003। अगले दिन भगवन् ने अचानक यह घोषणा की आज से मैं फलाहार का एक टुकड़ा भी नहीं खाऊँगा। न तो जल ही ग्रहण करूँगा, न दुग्ध ही। मैं कुछ भी ग्रहण नहीं करूँगा।
भक्तों के ऊपर जैसे आकाश से अंगारे बरस पड़े। भक्तों ने बहुत जिद किया किन्तु भगवन् टस से मस नहीं हुए।
अन्न, जल त्याग करने के कुछ दिनों पश्चात् भगवन को पक्षाघात हो गया। भगवन की मनाही को दरकिनार करते हुए भक्तगण उन्हें सीतापुर जिले के खैराबाद अस्पताल में भर्ती करवाए। वहाँ हरिशचंद्र श्रीवास्तव भी थे। कुछ दिनों की चिकित्सा के बाद भगवन् ने भक्तों से आश्रम ले चलने को कहा। । भगवन् आश्रम पहुँच गए। उस समय भगवन् की देखभाल स्वामी हरिओम जी, रामनरेश सिंह महंथ, पं0 श्याम बिहारी व्यास, पं0 राधेश्याम तिवारी, सरदार बलवीर, रवीन्द्र तिवारी, भउली बाबा, कृष्ण कुमार, सविता शुक्ला, तपसी बाबा, भक्तिन, भगवती बाबा, पाल बाबा, शिवकुमार बाबा, स्वामी संतोष बाबा, ऋषिराज बाबा आदि कर रहे थे।
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मैंने कहा था कि जब तक मैं शरीर में हूँ कोई मेरे सुभाष चंद्र बोस रूप का प्रचार-प्रसार न करे।
भगवन् का संदेश डाॅ0 बागची को दे दिया गया। वह लौट गए। शायद उनके लिए यह बहुत बुरा दिन था। क्योंकि वह भगवन् की भक्ति करते थे|
आश्रम में फूस की झोपड़ी के सिवाय कुछ भी नहीं था। न कोई सामान, न कोई सम्पदा। एक वट वृक्ष है जो भगवन के सच्चिदानंद स्वरूप को एकटक देखता रहता था। भगवन इसी वट वृक्ष के नीचे समाधिस्थ रहते थे। वहाँ जो सम्पदा थी वह तीनों लोक की सम्पदा से बड़ी थी कि वहाँ भगवान राम अपने नेताजी अवतार में रह रहे थे। लेकिन इस सम्पदा को पाने के लिए ज्ञान, भक्ति, योग, वैराग्य की जरूरत थी। मनुष्य की ओछी प्रवृत्तियों और अज्ञानता को क्या कहा जाए। उस समय कुछ आश्रमवासी सोच रहे थे कि भगवन् अमुक को महंथ बना दें, या अमुक को गद्दी दे दें। महर्षि व्यास ने भागवत में लिखा है-भगवान की शपथ लेकर मैं यह बात कहता हूँ कि इस धरती पर मनुष्य से बढ़कर कोई आश्चर्य नहीं है कि लोग साक्षाात भगवान कृष्ण को नहीं पहचान पा रहे हैं। यद्यपि तारों भरा आकाश उन भगवान के प्रेम में है। चंद्रमा की किरणें उनकी वंशी के साथ खेलती रहती हैं। वह सौंदर्य के आगार हैं। चक्र सुदर्शन धारण करते हैं, फिर भी मूर्ख लोग उन्हें साधारण मनुष्य मानते हैं। उसी प्रकार कुछ मूर्ख यह सोच रहे थे कि देखो आश्रम की गद्दी भगवन् किसे सौंपते हैं ? वट वृक्ष की पत्तियाँ हवा के झोंके में आवाज कर रही हैं, जैसे कि वे गहरे दुख में हों। मौसम थका हुआ और पराजित लौट रहा था। जब से भगवन् बीमार पड़े, वैसा ही कुछ हो रहा था जैसा भगवन् ने भविष्यवाणी की थी: भगवन् ने कहा था वह वस्त्र पहनेंगे, बोलेंगे, बातचीत करेंगें, जब उन्हें यह पृथ्वी छोड़नी होगी।
लंबे अर्से से लोग भगवन् की वाणी सुनना चाहते थे। संकेत लिपि से ही वह विस्तृत से विस्तृत वार्ता करते थे। जब वह बोले तो बड़ी मधुर और धारा प्रवाह, ओजस्वी हिन्दी बोले।
भगवन् ने कहा-’’
’’यह संसार मेरे शरीर में रहते नेताजी के रहस्य का पर्दाफाश नहीं कर सकता है। लेकिन मेरा एक रूप काल भगवान का है। काल सत्य है और सत्य ही काल है। काल संसार के लिए जरूरी सत्य उपलब्ध कराता है। शरीर मर जाता है लेकिन आत्मा अमर रहती है। मैं हर प्राणी की आत्मा में बसने वाला ईश्वर हूँ और इस ब्रम्हांड को धारण किए हुए हूँ। यदि आवश्यक होगा नेता जी के जीवन के छिपे हुए अध्याय उजागर हो जाएँगे। प्रेम, शांति और समृद्धिपूर्ण जीवन के लिए स्वार्थ त्यागकर सत्य के रास्ते पर चलना होगा। लोभ और हिंसा त्याग देनी चाहिए। यह प्रकृति तुम सभी को पोषण देती है। योगमाया जगदम्बा की संतान होकर तुम कैसे गर्व करने योग्य स्त्री या पुरूष साबित होगे? केवल भावनाएँ या वाणी पर्याप्त नहीं होती हैं। कर्म ही है, जो संसार के चक्र को चलाता है। करम प्रधान विश्व करि राखा। यह संसार धन और परमाणु बमों के अम्बार से अपनी शक्ति दिखा रहा है। यह केवल रेत के महल बनाने जैसा नहीं है बल्कि नर्क की नदी खोदने
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के समान है, जिसमें डुबकी लगाकर दर्द ही दर्द सहना है। यदि तुम अपने महान् पूर्वजों से सभी माताओं की माता इस प्रकृति से और हजारों संतो और अवतारों से नहीं सीख सकते हो तो भगवान की छाया में भी अपनी रक्षा नहीं कर सकते हो। अब मुझे यह शरीर छोड़ना है, तुम लोग दुखी मत होना सत्य और अहिंसा के उपासक बनो अपनी मातृभूमि के वीर सपूत बनो। कर्मठ बनो जैसे सप्तर्षि , अज़ राम, सीता , लक्ष्मण , हनुमान , भरत ,कृष्ण , बुद्ध , शंकर , रामानुज, रामानंद, गोरखनाथ , भू देवी, गोदा देवी , वासुकी देवी , पुनीता वती, तिलकावती नामदेव , ज्ञानेश्वर , राम दास , शिवा जी , कबीर दास , चैतन्य महाप्रभु , तुलसीदास , मीराबाई , गुरुनानक , गुरु गोविंद सिंह , रुद्रमा देवी , महारानी दुर्गावती , महाराणा प्रताप ,अवंतीबाई , तैलंग स्वामी , शिरडी साईं , महारानी चेनम्मा , महारानी लक्ष्मीबाई , झलकारी बाई ,राम कृष्ण परमहंस , ईश्वरचंद्र विद्या सागर , स्वामी विवेकानंद , सिस्टर निवेदिता , लोकमान्य तिलक , महात्मा गांधी , कस्तूरबा , नेता जी सुभाष चंद्र बोस , भगत सिंह , आजाद मीरा बेन , मदर टेरेसा आदि हजारों संतों , अवतारों , महापुरुषों , वीरांगनाओं ने अभय होकर सम्पूर्ण धरती पर अत्याचारियों का दमन , स्वतंत्रता , वीरता , अहिंसा , शांति , समृद्धि आदि शाश्वत शीलो की स्थापना में अपना जीवन लगा दिया , उसी प्रकार स्त्री पुरुष श्रेष्ठ कार्य करें । मैं देह छोड़ने के बाद निर्गुण निराकार रूप से विश्व कल्याण का कार्य करते हुए ,धरती और अंतिम मनुष्यता की रक्षा के बाद ही अपने क्षीर सागर लौटूंगा । मैं तुम लोगों के साथ हूँ।
भगवन् ने पं0 श्याम बिहारी व्यास के पुत्र हरिओम को बुलाया। व्यास जी भगवान वासुदेव के उपासक थे। हरिओम जी शीघ्र ही अपने गुरूदेव भगवन की कुटिया में पहुँचे। वह भगवन् के चरणों में लिपट गए। उनका हृदय घोर निराशा में डूबा हुआ था, कहीं ये तारनहार चरण बिछुड़ न जाएँ।
भगवन् ने हरिओम से कहा - तुम्हारा जन्म दिव्य है, तुम्हारा कर्म भी दिव्य है। तुम तपेश्वरी के सर्वोच्च स्थान से आए हो। तुम्हारी माँ आशा और तुम्हारे पिता व्यास दोनों तुम्हारे तेजस्वी स्वरूप को देखकर प्रसन्न होंगे।
दुख से अधीर हरिओम ने कहा - हे प्रभु न मैं कुछ जानता हूँ, न जानना चाहता हूँ। बस एक ही इच्छा है कि जैसे भगवान शिव के जटाओं से गंगा निकली हैं वैसे अपने अनुग्रह की गंगा मुझ पर सदा बरसाते रहिए। मुझे आप के चरणों में बैठना ही सबसे सुखद लगता है, वहीं मेरे लिए सच्चिदानंद धाम है। मुझे कभी भी अपने चरणों से वंचित न कीजिएगा।
भगवन ने हरिओम को सांत्वना देते हुए कहा: मैं जनता हूँ मुनि शुकदेव की तरह तुम्हारी हीरे जैसी दिव्य आत्मा ही संसार की उद्धारक शक्तियों को धारण कर सकती है। इस युग में मानव जाति ने अपने लिए बड़ा कठिन रास्ता चुना है। अपनी दैवीय आभा से तुम्हें मेरे विछोह में दुखी प्रिय भक्तों का दुख दूर करना होगा। तुम्हारा नाम भक्तों की आत्मा को शक्तिशाली दैवीय ज्वार से शुद्ध कर देगा। यदि तुम्ही इतना दुख विह्वल हो जाओगे तो यह तपेश्वरी धाम, जिसकी महिमा आकाश गंगाओं के पार तक देदीप्यमान रहेगी, में भला कौन तपस्या करेगा।
हरिओम जी दोनों हाथ जोड़कर भगवन से विनती किए: आप मेरे गुरू हैं, मेरी माँ हैं और पिता। आप आत्माओं की आत्मा हैं। आपके चरणों की धूलि मैं नित्य अपने मस्तक पर रखता हूँ। आपका आदेश मेरे लिए ब्रम्हा, विष्णु, शिव और आदिशक्ति जगदम्बा का आदेश है।
जिस क्षण हरिओम जी भगवन् को समर्पित हुए भगवन ने दैवीय शक्तियों का खजाना अपना हाथ हरिओम जी के शीश पर रख दिया। स्पर्श मात्र से ही हरिओम जी गहरी समाधि में डूब गए। भगवन् ने उन्हें बहुत सी दिव्य शक्तियाँ प्रदान कीं। भगवन् ने उन्हें समाधि से जगाया। हरिओम अब बुद्धत्व प्राप्त महायोगी स्वामी हरिओम जी थे।
भगवन् ने अपने भक्तों को बुलाया और तपेश्वरी भंडारा में प्रसाद पाने को कहा। सुदूर शहरों और गाँवों के भक्त आए हुए थे। सभी स्तब्ध थे। भगवन ने कई भक्तों को अपने पास बुलाया और स्वामी हरिओम का तिलक करने को कहा। किसी ने आपत्ति जताई तो भगवन् बोले: हरिओम पूर्व जन्म का ही महान योगी है । वह जन्मना आदिशक्ति का दुलारा है । मैने अपने काम से उसे धरती पर बुलाया है । वह असंख्य आत्माओं को पावन बनाएँगें। भक्ति के साथ जो उन्हें बुलाएगा भगवान वासुदेव की तरह अपने निकट पाएगा।
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भक्त गण भगवन के चरणों में नत हुए और स्वामी हरिओम जी का तिलक किए।
भगवन् अपने भक्तों को सान्वना देते हुए सभी को अपने-अपने घर जाने को कहा। यह बहुत विचलित कर देने वाला दृश्य था। कुछ भी सांत्वना नहीं दे सकता था। दैवीय महिमा से प्रकाशित दिन और रात पीले पड़ गए। 27 नवम्बर 2003 के दिन भगवन् समाधि में गए और कभी वापस नहीं लौटे। बहुत से भक्त इकठ्ठा हुए। अगले दिन भगवती तपेश्वरी के सामने स्वामी हरिओम जी ने भगवन को मुखाग्नि दी। वहीं भगवन् की समाधि बनी। पुलिस फोर्स और मीडिया के लोग वहाँ पहुँचे। मीडिया के लोग भक्तों से पूछ रहे थे कि भगवन् नेता जी थे या नहीं। अब भक्तों के हाँ या नहीं से क्या होना था।
इस पृथ्वी को छोड़ने के पहले भगवन् ने कहा:
संसार को चलाने वाली शक्ति ईमानदारी और अच्छे कर्म हैं। मनुष्य को निराशावादी नहीं होना चाहिए। यदि कोई यह कहता है कि आजादी के बाद भारत में भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों की ही बाढ़ रही तो इसका निष्कर्ष सही नहीं है। यह देश विकास के इस स्तर तक कैसे पहुँच गया कि एशिया में महत्वपूर्ण स्थान पर है, जाहिर है देश की तरक्की के लिए बहुत से अधिकारियों और नेताओं, कर्णधारों आदि सभी ने कठिन परिश्रम किया। बहुत से शासक और अधिकारी इस देश की गौरवशाली परम्परा को जीते हुए सत्य, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, अहिंसा और प्रेम के प्रति समर्पित रहते हुए अपनी मातृभूमि की समृद्धि और गौरव बढ़ाने के लिए दिन-रात कार्य किए, जिससे कि यह देश सूर्य सा चमकता रहे। इतिहास के खराब मुद्दों को दोहराना नहीं चाहिए चाहे वह किसी भी नेता या अफ्सर से सम्बन्धित क्यों न हो। उसके अच्छे गुणों और कार्यों की ही चर्चा करनी चाहिए। इससे देशवासियों का चिंतन और कर्म स्वच्छ रहेगा और मातृभूमि में बहुरंगी समृद्धि होती रहेगी। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वस्थ और सुंदर परंपरा का निर्माण करेगी। मातृभूमि के अपराधी दुश्मनों के साथ बिना ढिलाई किए उन्हें तुरंत मृत्युदंड देना चाहिए। उन्हें जेल में रखकर उनकी सुरक्षा में जनता की गाढ़ी कमाई खर्च करना कोरी मूर्खता है।
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ब्रिटेन को छोड़कर जापान, जर्मनी, इटली और यूरोप और एशिया के दूसरे देश विश्वयुद्ध के दिनों में भारत के प्रति बहुत ही मैत्रीपूर्ण थे। उन देशों ने नेताजी को अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए पूरे हृदय से समर्थन दिया।
यदि कोई भी देश तनिक भी सहायता करता है तो हमारा कर्तव्य है कि हम उसकी पर्वत की ऊँचाई भर मदद करें।
वस्तुतः हृदय से नेताजी सोवियत रूस के पक्षधर थे किन्तु उसकी सहायता प्राप्त करने का कोई मार्ग नहीं था। वह धुरी राष्ट्रों की साम्राज्यवादी नीति के वैसे ही खिलाफ थे जैसे कि मित्र राष्ट्रों की साम्राज्यवादी नीति से।
अब हम आजादी के आंदोलन के दिनों से बहुत दूर आ पहुँचे हैं। रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, इटली, आस्ट्रेलिया और यूरोप, एशिया, अफ्रीका के बहुत से देशों से भारत के संबंध अत्यंत मैत्रीपूर्ण हैं। हम बहुत ही संवेदनशील दौर से गुजर रहे हैं। जिसमें संसार के बहुत देशों से मैत्रीपूर्ण और सहयोग का रिश्ता जरूरी है। बड़े पैमाने पर आणविक हथियारों का उत्पादन इस सभ्यता के लिए खतरे की घंटी है। मेरा अनुभव कहता है कि राजनीतिक परिस्थितियाँ रातों-रात बदलती हैं। स्वातंत्रयोत्तर भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, जर्मनी, जापान, इटली और यूरोप तथा एशिया, अफ्रीका के बहुत से देशों के साथ मिलकर एक शानदार इतिहास बनाया है। अब संसार की समृद्धि और शांति के लिए मिल जुलकर काम करना चाहिए। हमें प्रत्येक राष्ट्र का सम्मान करना चाहिए और युद्ध के बारे में तब तक नहीं सोचना चाहिए जब तक कोई देश युद्ध करने के लिए हानिकारक और खतरनाक स्थितियों को थोप नहीं देता है। यदि किसी देश ने तुम्हारी जमीन पर कब्जा किया है तो तुम्हें सुरक्षात्मक रणनीति का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए बल्कि यह सोचकर बहुत मजबूती से युद्ध करना चाहिए कि खोने के लिए कुछ नहीं है पाने के लिए बहुत कुछ है मसलन अपराधी देश को पर्याप्त रूप से दंडित करना। ब्रिटेन, अमेरिका, रूस, फ्रांस आदि देशों की जनता का नेताजी स्वप्न में भी विरोधी नहीं थे। वह इन देशों की केवल साम्राज्यवादी नीति के खिलाफ थे, वह उस व्यवस्था के खिलाफ थे जो किसी देश को गुलाम बनाती है और लोगों की आजादी को रौंदती है, जो कि जन्मसिद्ध अधिकार है। किसी भी देश को हमारे अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, जो हमारी सम्प्रभुता पर सवाल उठाए।
जन सामान्य मजबूरी में ही युद्ध चाहता है, वरना वह आजादी, खुशी समृद्धि और शांति ही चाहता है। यह मित्र देशों द्वारा उड़ाया गया अफवाह था कि सुभाष चंद्र बोस उन राष्ट्रों से घृणा करते हैं। अपने भाषणाें में, प्रसारणों में नेताजी केवल शासकों और सेनाओं की नीतियों का जिक्र किया।
वह सोवियत रूस का पक्षधर थे और राष्ट्राध्यक्ष की तरह अज्ञातवास में रहने के लिए कृतज्ञ भी लेकिन वह जापान का तहे दिल से कृतज्ञ थे जिसने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ने में आई0एन0ए0 की खुले दिल से मदद की। जर्मनी और इटली के प्रति भी आभारी होना पवित्र दायित्व है। उन दिनों ब्रिटिश सेना के खिलाफ जो भी सहायता कर रहा था वह मानवता और सत्य की सहायता कर रहा था। हर एक को उस भारत भूमि पर हमेशा गर्व करना चाहिए जिसने सारे संसार को प्यार किया, भारत विश्व मानवता, यहाँ तक कि चर-अचर सृष्टि और संसार की माता आदिशक्ति प्रकृति के पक्ष में सदा खड़ा रहा। भारत आधुनिक देश बन चुका है लेकिन अपने पूर्वजों द्वारा उद्घाटित इस सत्य में उसका विश्वास
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अक्षुण्ण है और रहेगा कि परमात्मा सर्वव्यापी है, वह प्रत्येक प्राणी, प्रत्येक जीवन और यहाँ तक कि सम्पूर्ण सृष्टि में है। समूचा ब्रम्हांड ईश्वर की प्रतिच्छवि मात्र है।
सारी सृष्टि परमात्मा ने रची है। संसार ईश्वर का विराट कलेवर है, इसलिए समूची सृष्टि की सेवा ही ईश्वर की आराधना का सर्वोत्तम मार्ग है। धरती को हरियाली से भर दो। दुखी मुनष्यों की सेवा करो, माता-पिता-गुरू प्रकट ईश्वर हैं, उनकी सेवा से तुम जीवन की चरम ऊँचाई प्राप्त कर सकोगे। हिन्दू, बौद्ध, जैन, इस्लाम, ईसाई, यहूदी आदि सभी धर्मों को मानने वाले तुम्हारे ही विराट जीवन के अविभाज्य हिस्से हैं। सूर्य-चंद्रमा-धरती ब्रम्हांड की सभी चीजें कोई बाँट नहीं सकता, फिर बाँट-बाँट कर ही कलह और युद्ध के मार्ग पर जाना कहाँ की बुद्धिमानी है। नारी में नर का अंश है और नर में नारी का अंश है, दोनों के साहचर्य से संसार है। पुरूष-स्त्री-बच्चे और परिवार के प्रत्येक सदस्य के प्रति प्यार और सभी के उत्थान के लिए निष्काम कर्म ही स्वर्ग है। आणविक युद्ध घोर विनाश लाता है। दुनिया सुख, शांति और प्रेम से रहे, इसके लिए हर मनुष्य को सुंदर कर्म करते रहना चाहिए। अहंकार करना, किसी को ओछा समझना, बेईमानी करना, मिथ्याचरण करना, किसी का हक मारना ही नरक का रास्ता है।
परमात्मा ने स्वर्ग जैसा सुंदर साम्राज्य सौंपा है कि निष्काम कर्म करते हुए सृष्टि को सुंदर बनाओ और भक्ति, कर्म और ज्ञान से परमात्मा को ही प्राप्त हो जाओ।
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छं0- ब्रिटिश सैन्य संहारि सुभाष कट्ट विकट्ट भट युद्ध मारे
तोप-बम-गोली चलहि दुश्मन भड़भट्ट भड़ भूजि डारे
हहटट्ट षणखट्ट गिरिवर गिरहिं सागर उठहि परलय पिशाची
जानहि को केशव अवतरे मोहन सुभाषहिं धरनि राँची।।
चौ0- रोवहि चर अरू अचर जहाना। रोवहि सुर-नर मुनि जग नाना।
नेताजी जो विष्नुहिं रूपा। शिव-शक्ती संयुत सो अनूपा।।
नेता जी कल्किहिं अवतारा। लीला कीन्ह रम्य भव तारा।।
बेलि-विटप कुसुमित बन नाना। फुल्ल कमल-सर-सरि-गिरि जाना।
नेताजी भगवन के रूपा। सत्य नरायन कल्कि स्वरूपा।
पासँग भर बुद्धी लेइ डींगा। हाँकहिं चालि कुचालि सो डींगा।।
साधुन्ह जग बहु कपट पसारा। नहिं सुभाष साधू बनि हारा।
सिंह पुरूश सो परम प्रतापी। क्यों छिपिहै भल एहि जग पापी।।
जैसे सूर्य व्योम मँझधारा। तपहि प्रकाशहि जगती सारा।।
वैसे नेता जी किए प्रकाशा। भगवन् रूप सम्राट सो भासा।।
निज माया सन राखे दूरी। जग सन पुनि किरपा अति भूरी।।
जनम जनम कर पुन्य जो जागा। पाए भगवन-चरन सो रागा।।
दो0- निज आसन बैठाए, भगवन दै सन्यास
हरि ओम हरि ओम भगवन, धरती माँ कर आस।।
छं0- जेहि चरन कमलहिं पूजि धरती फुल्ल-पुंज वसुंधरा
जेहि विष्नु-नयनहिं-नेह भीजी निखरि सँवरी सुगंधरा
भगवन छविहिं छवि छकि छोहाई आज अवनी रँगभरा
वसन-वासंती सुहाई रँग रँग रची रस अम्बरा
कठिन दुख सोइ कहहि केसे विकल उर जो कुलिष करा
तरू-लता-पल्लव अश्रु भीजे पवन-पावक रहि क्षरा
दो0- नेता जी भे भगवन् भया कल्कि अवतार।
ज्ञानी-ध्यानी धन्य भे, धन्य भया संसार।।
फूस की कुटिया रमत शिव, दुनिया मरघट जाइ
झूठ मनावहि पुण्य-तिथि, हँसहिं सरस्वति माइ।।
चै0- केते भया संत अवतारा। तबहुँ न जग झूठहिं सन हारा।।
झूठे झूठ रचा जग माँही। साँच भला कस हियहिं समाही।।
बापू सत्य सत्य अवतारा। सत्य सिखाइ चले संसारा।।
सोइ साँच पठाए मरघट घाटा। राजा-मंत्री जग सँग करि घाटा।।
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झूठ लिखा सुभाष इतिहासा। विमान-हादसा मृत्यु जो ग्रासा।
नेताजी बनिगे संन्यासी। तपोव्रती शिव सम शुभ रासी।।
जो नेताजी मुक्त अकाशा। सो कँह भल कस कपटहिं रासा।।
कपटी जग नहिं मोहिं फिर आना। जग-सम्राट नेता जी ठाना।।
रमत हिमालय तीरथ वन-बागा। हिमगिरि सम तप करहिं विरागा।।
देखा तब निज रामहिं रूपा।। कीन्ह जहाँ विश्राम अनूपा।।
सीय भ्रात लक्ष्मन के साथा। देखा रचा जो मुजेहना गाथा।।
ऋषि-मुनि तपोपूत स्थाना। जुग जुग तपोस्थली जाना।।
भगवन पण्य-कुटी छवावा। सुर-नर-मुनि सबके मन भावा।।
अद्भुत लीला कीन्ह भगवाना। जेहि जनावा सो तेहिं जाना।।
रचा दिव्य नवल इतिहासा। नेताजी नव युग कर आषा।
दो0- नेताजी केवल इक, नेता जग-सन्मान।
तपोव्रती सो राम सम, भे सुभाष, भगवान।।
( लेखक - परब्रम्ह परमेश्वर गुरू- भगवन, प्रकृति और परमात्मा को साक्षी मानकर निष्पृह भाव से भगवन, के बारे में जो सत्य मैं जानता था उसे संक्षिप्त रूप में सार्वजनिक कर रहा हूँ। 23 जनवरी 2019 को गुरूदेव स्वामी हरिओम जी के श्री चरणों में बैठकर मैंने Netaji as Bhagwan ग्रंथ को www.netajibhagwan.com पर सार्वजनिक किया। बहुत वर्षो से द्वंद्व में था कि इतने बड़े सत्य पर बिना ठोस साक्ष्य के संसार कैसे विश्वास करेगा, इसीलिए मैं इस सत्य को सार्वजनिक नहीं कर रहा था। लेकिन इस वर्ष मेरी आत्मा के सारथी केशव (भगवान कृष्ण) की अनिवार और प्रबलतम प्रेरणावश मैंने अपनी अंग्रेजी पुस्तक Netaji as Bhagwan और मुजेहना के भगवन नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उसी संसार को समर्पित किया, जिसके पास साक्ष्य है। मैने अपना देखा और भगवन तथा भक्तो से सुना, जाना और अनुभूत सत्य व्यक्त किया है, यह संसार पर निर्भर करता है कि वह क्या खोजता है और क्या पाता है।
मुजेहना के भगवन् नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सान्निध्य में (1990-2003) ग्रंथ लगभग 700 पृष्ठों का है, जो अभी अप्रकाशित है।)
(Dr. Brijesh Kumar Srivastava)
E-mail:-brajeshlitt@gmail.com
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